जन अपेक्षाओं पर जनता दरबार

 पूरे पांच वर्षो के अंतराल के बाद जैसे ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जनता दरबार की बात की तो जनता उमड़ पड़ी, पर जिस तरह से गत बुधवार का दरबार लगा, उससे कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। आज जिस तरह से भ्रष्टाचार देश में आम रोग बन चुका है, उससे निपटने और जनता को राहत दिलाने के लिए ऐसा कोई भी दरबार कारगर नहीं होने वाला है। अच्छा हो कि पूरे प्रदेश में जनता की शिकायतें जानने के लिए अलग से सरकार का एक शिकायती पोर्टल बनाया जाए, जिसमें प्रदेश के किसी भी हिस्से से कोई भी नागरिक किसी भी समस्या की शिकायत कर सके। लोग कह सकते हैं कि जब प्रदेश में कई संगठन जनता के लिए बने हुए हैं तो एक और प्रक्रिया अपनाने की क्या आवश्यकता है तो उनसे यह भी पूछा जाना चाहिए कि प्रदेश की जनता कितनी बार इस तरह से ख़ुद आगे आकर अपनी समस्या को लखनऊ तक पहुंचा सकती है? इंटरनेट के बढ़ते हुए विस्तार को देखते हुए अगर केवल शिकायतकर्ता की पहचान जानकर ही शिकायत पर काम किया जा सके तो यह आने वाले समय के लिए सुखद परिवर्तन होगा। अभी तक अनियमित काम करने वाले अधिकारी और नेता जानते हैं कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो सकती है और वे इस बात का लाभ उठाकर क्षेत्र में जनता को परेशान किया करते हैं। जनता दरबार का सांकेतिक महत्व हो सकता है और काफी हद तक वहां आई शिकायतों का निपटारा भी हो सकता है, लेकिन क्या कोई भी इस तरह से लगने वाला दरबार पूरे प्रदेश के लोगों की समस्याओं को दूर कर सकता है? लोगों की परेशानियों को वास्तव में दूर करने के लिए अखिलेश सरकार को मंडल के अनुसार शिकायतों को लेने और उन्हें मंडलायुक्त के स्तर से निपटाने की व्यवस्था करनी चाहिए। इसके लिए मंडल स्तर पर इन शिकायतों को देखने के लिए अलग से पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को तैनात किया जा सकता है। सबसे बड़ी जरूरत इस काम में जवाबदेही निर्धारित करने की है, क्योंकि आज के सरकारी कामकाज में यह पता ही नहीं चल पाता है कि कब किस व्यक्ति ने किस विभाग के बारे में कोई शिकायत की? इसके लिए शिकायत आते ही उसे नेट पर डालने को अनिवार्य किया जाना चाहिए, क्योंकि जब तक अधिकारियों पर उत्तरदायित्व नहीं डाला जाएगा, परिणाम नहीं दिखाई देंगे।

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