सावधान! इंटरनेट पर सीआईए कर रहा है जासूसी

सीआईए परेशान है सोशल नेटवर्किंग साइट की बढ़ती जनप्रियता से। वे लगातार छान -बीन कर रहे हैं कि कौन सी साइट जनप्रिय है और उस पर तुरंत अपने "ई" जासूस लगा देते हैं। ङ"ख१४ऋ

अमेरिकी गुप्तचर संस्था सीआईए ने अपने पैर इंटरनेट पर रख दिए हैं। अब सीआईए के "ई जासूस" आपके ब्लॉग पढ़ना चाहते हैं, ट्विटर और फेसबुक में आप क्या कर रहे हैं, उसे देखना चाहते हैं। वे यह भी जानना चाहते हैं कि इंटरनेट से आप कौन सी किताब "अमेजॉन" से खरीद रहे हैं, कौन सी किताब आप इंटरनेट पर पढ़ रहे हैं। अमेरिका की एक निवेश कंपनी "इन-क्यू-टेल" ने अपनी पूंजी का बड़ा हिस्सा इस क्षेत्र में निवेश करने का फैसला लिया है। यह फर्म सीआईए की सहयोगी कंपनी है। इस कंपनी ने दृश्य तकनीकी संसार में पैसा लगाने का फैसला किया है। यह काम वह अनेक सॉफ्टवेयर कंपनियों में पैसा निवेश करके करना चाहती है। इसके बहाने वह पूरे इंटरनेट पर नजरदारी करेगी।

अमेरिका में गुप्तचर सेवाओं में एक बड़ा आंदोलन चल रहा है जिसके तहत नेट की सूचनाओं को जानने, एकत्रित करने और फिर उसे सीआईए, एफबीआई आदि के काम में लगाने के लिए हजारों लोग लगे हैं। इस समय इंटरनेट पर मीडिया के विभिन्न माध्यमों के जरिए सूचनाओं, कार्यक्रमों आदि के संचार की बाढ़ आई हुई है। एक अनुमान के अनुसार वेब २.० साइट पर जाने वाले लोगों की तादाद प्रतिदिन पाँच लाख है। एक मिलियन से ज्यादा लोग प्रतिदिन ब्लॉग, बातचीत, ई-व्यापार, फ्लिकर, यूट्यूब,आदि का इस्तेमाल कर रहे हैं। सीआईए के गुप्तचर अपने "ई" जासूसों के जरिए यह भी वर्गीकरण कर रहे हैं कि कौन कितना प्रभावशाली संप्रेषण कर रहा है। वे यह भी देख रहे हैं कि यूजर किस तरह की प्रतिक्रियाएँ व्यक्त कर रहा है। यूजर कौन सी पोस्ट को फॉरवर्ड कर रहा है। नेट लेखक के साथ यूजर किस तरह का संवाद कर रहा है। जिन मसलों पर सोशल नेटवर्क या ब्लॉग पर चर्चाएँ हो रही हैं उनका विश्व राजनीति पर क्या असर होगा। अगर असर गंभीर होने की संभावनाएं हैं तो सीआईए जासूस चेतावनी देंगे। ये बातें "इन-क्यू टेल" के प्रवक्ता डोनाल्ड तिघे ने कही हैं। इस कार्य के लिए खास किस्म का सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किया गया है जिसके जरिए आपकी सूचनाएँ एकत्रित की जा रही हैं। यह सॉफ्टवेयर बताता है कि किसकी पोस्ट पॉजिटिव है, किसकी नेगेटिव है। यह कंपनी अपनी इस योजना के आधार पर एक पायलट सर्वे करने जा रही है और यह पायलट सर्वे यदि सफल रहता है तो इसके बड़े दूरगामी परिणाम होंगे। यह सीधे व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के साथ मानवाधिकारों का हनन है। इस कंपनी ने इस काम में अभी ९० लोगों को लगाया है और आरंभिक तौर पर २० मिलियन डॉलर का निवेश किया है। इस मामले में विदेशी भाषाओं पर भी नजरदारी रहेगी। यह सारा काम "विजिविल टेक्नोलॉजी" कंपनी के जरिए कराया जा रहा है। उसने ही इसका सॉफ्टवेयर बनाया है। यह कंपनी अमेरिकी गुप्तचर संस्था की सहयोगी कंपनी के रूप में काम कर रही है और इसने विभिन्न भाषाओं के विशेषज्ञ और सैन्य विशेषज्ञ इंजीनियर जुगाड़ लिए हैं। इनका काम है विभिन्न भाषाओं की नेट संचार सामग्री की जांच-पड़ताल करना।

सीआईए परेशान है सोशल नेटवर्किंग साइट की बढ़ती जनप्रियता से। वे लगातार छानबीन कर रहे हैं कि कौन सी साइट जनप्रिय है और उस पर तुरंत अपने "ई" जासूस लगा देते हैं। ये "ई" जासूस लगातार बेचैन आत्मा की तरह एक साइट से दूसरे साइट की ओर भागते रहते हैं। अमेरिका के जासूस परेशान हैं कि नेट के ७० प्रतिशत यूजर गैर अमेरिकी हैं। ये अमेरिका के बाहर रहते हैं। इनका जाल दुनिया के १८० देशों में फैला हुआ है। तकरीबन २०० गैर अंग्रेजी भाषी ब्लॉगर-ट्विटर समूह हैं, ये लोग रीयल टाइम में तूफान मचाए हुए हैं। इन्हें सीआईए नजरअंदाज नहीं करना चाहता। उनका मानना है कि यह रीयल टाइम सूचना सुनामी है। हम उन्हें अबोध कहकर नजरअंदाज नहीं कर सकते।

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