कालेधन के इस कारोबार को इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि २००१ में द्ख्र १० लाख करोड़ की चलन मुद्रा में एक हजार के नोट वाली मुद्रा का योगदान केवल १.८ प्रतिशत था जो कि अब ३० प्रतिशत है। ङ"ख१४ऋ
फोर्ड फाउंडेशन के एक प्रोजेक्ट अध्ययन के अनुसार भारत का स्विस व अन्य विदेशी बैंकों में लगभग द्ख्र ७० लाख करोड़ (१४५६ बिलियन अमेरिकी डॉलर) कालेधन के रूप में जमा है। कालेधन की यह मात्रा भारत के सकल घरेलू उत्पाद से कहीं अधिक है। कालेधन के दो रूप हैं। विदेशों में जमा कालाधन और देश में जमा कालाधन। इस धन की गणना और लेखा-जोखा अधिकारिक रूप से क्रय-विक्रय और वाणिज्य-व्यापार के व्यवहार में नहीं होता इसलिए इसे कालाधन कहते हैं।
कालाधन विदेशों में अनेक तरीकों से जमा होता है। मसलन, नागरिक व रक्षा सौदों में ली गई रिश्वत के रूप में। विदेशों में कमाए धन को देश में नहीं लाना। हवाला के जरिए। इसका विकृत रूप समुद्री रास्ते से सोने-चाँदी व रुपयों की तस्करी करना है। किसी भी मुद्रा का योगदान उस देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में तभी होता है जब वो संतुलित रूप से चलन में रहे। विदेशी बैंकों में जमा भारत का कालाधन क्योंकि अपने देश में चलन में नहीं है, इसलिए इसका भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में कोई योगदान नहीं है। देश में जमा कालाधन कुछ हद तक अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान देता है। कालेधन से सामाजिक-आर्थिक विषमता बढ़ती है, यह देश के आर्थिक विकास में भी बाधक है।
देश में जमा कालेधन की भयावहता को इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि हमारे देश में द्ख्र १० लाख करोड़ चलन में हैं जो सकल घरेलू उत्पाद का १५ प्रतिशत है। जबकि मुद्रा का संतुलित चलन सकल घरेलू उत्पाद का ३ प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। अमेरिका, ब्रिटेन और कनाड़ा में मुद्रा का चलन उनके सकल घरेलू उत्पाद का ३ प्रतिशत ही है। भारत में द्ख्र १० लाख करोड़ की मुद्रा का चलन का मतलब यह हुआ कि हमारा सकल घरेलू उत्पाद लगभग द्ख्र ३३० लाख करोड़ होना चाहिए। जबकि यह द्ख्र ६० लाख करोड़ ही है। इसका मतलब यह हुआ कि कहीं न कहीं लगभग द्ख्र २७० लाख करोड़ हमारे देश में प्रतिवर्ष कालेधन में बदल जाते हैं। कालेधन के इस कारोबार को इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि २००१ में द्ख्र१० लाख करोड़ की चलन मुद्रा में एक हजार के नोट वाली मुद्रा का योगदान केवल १.८ प्रतिशत था जो कि अब ३० प्रतिशत है। जबकि हमारे देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा एक हजार के नोट रखने की क्षमता नहीं रखता। निष्कर्षतः एक हजार के नोटों का चल कालेधन के रूप में धनाढ्य वर्ग द्वारा किया जाता है।
कल्पना कीजिए कि विदेशी बैंकों में जमा द्ख्र ७० लाख करोड़ भारत वापस आ जाएँ तो? ऐसा हुआ तो भारत आर्थिक संपदा की दृष्टि से विश्व के पाँच शीर्षस्थ देशों में एक होगा। इस कालेधन की कुछ मात्रा से भारत का विदेशी कर्ज चूकता हो जाएगा। इस धन से अर्जित ब्याज मात्र से भारत का वार्षिक केंद्रीय बजट पूरा हो जाया करेगा। भारत के करदाताओं को टैक्स देने की जरूरत नहीं होगी। इस धन से हर जिले को द्ख्र ५० हजार करोड़ दिए जा सकेंगे या ये कह लीजिए कि हर गाँव को द्ख्र १०० करोड़ मिल सकेंगे। यह पैसा सीधे भारत की जनता को बाँट दिया जाए तो हर परिवार के हिस्से में द्ख्र २.५० लाख आएँगे। काश हमारे राजनेता ऐसा गंभीर प्रयास कर सकें कि भारत का विदेशी व घरेलू पूरा कालाधन सरकारी खजाने में जमा हो जाए और उसका उपयोग भारत के आर्थिक विकास में हो सके।
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