ऐसे कैसे जाएगा भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार इन दिनों पूरे देश में चर्चा का मुख्य विषय बना हुआ है। भ्रष्टाचार को लेकर कई नामी-गिरामी लोग भी चर्चा में हैं। कुछ लोग इसलिए कि उन पर भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोप हैं और कुछ इसलिए कि वे भ्रष्टाचार का विरोध कर रहे हैं। देश भर में तमाम सरकारी विभाग एवं एजेंसियां और गैर सरकारी संगठन भ्रष्ट लोगों के पीछे पड़े हैं। वैसे तो उन्हें बनाया ही इसलिए गया है कि वे भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करें, संलिप्त लोगों के कारनामे उजागर कर जरूरी सबूत जुटाएं और उन्हें सलाखों के पीछे भेजें। आदेश-निर्देश पर कोई धर-पकड़ करना अलग बात है, लेकिन आम तौर पर ऐसा कुछ होता हुआ बहुत कम ही जगहों पर दिखाई देता है जिससे यह लगे कि ये विभाग खुद रुचि लेकर ऐसे काम कर रहे हैं। जहां ऐसा दिखता है उनमें पंजाब भी एक है। विजिलेंस विभाग द्वारा कार्रवाई की बात वहां अकसर सामने आती रहती है और यह वहां बिना किसी बाहरी दबाव के होता है। यह अलग बात है कि इस कार्रवाई के दायरे में अकसर वहां भ्रष्टाचार में लिप्त छोटे-छोटे लोग ही आते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि भ्रष्टाचार चाहे निचले स्तर से किया जा रहा हो या ऊपर से, हर हाल में वह है तो भ्रष्टाचार ही। चाहे कैसे भी और कहीं से भी किया जा रहा हो, यह देश और व्यवस्था को खोखला ही करता है। आमतौर पर देखा यही जाता है कि भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में किसी भी जगह नीचे से लेकर ऊपर तक कई लोग शामिल होते हैं। सरकारी कामकाज की प्रक्रिया ही यही है कि जमीनी स्तर पर आने के बाद कोई भी काम निचले स्तर से ही शुरू होता है। इसीलिए कई मामलों में भ्रष्टाचार यानी रिश्वतखोरी और बैकडोर से काम कराने-करने का उपक्रम बाबुओं के मार्फत शुरू होता है। इसका ही परिणाम है, जो कई बाबू उस जमाने में भी करोड़पति बनते देखे गए, जबकि सरकारी दफ्तरों में उनका वेतन एक-दो हजार रुपये के दायरे में था। कुछ साल पहले दिल्ली में ही एक नगर निगम के एक इंस्पेक्टर के बारे में मालूम हुआ था, जो करोड़ों की संपत्ति का मालिक है। अगर कायदे से तलाश की जाए तो ऐसे कई और मामले भी सामने आ जाएंगे। अफसरों और राजनेताओं के संबंध में तो कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है। यह बात केवल दिल्ली ही नहीं, पूरे देश की है। कुछ विभागों के प्रति लोगों के आकर्षण की मुख्य वजह ही वहां मौजूद ऊपरी आमदनी की संभावना होती है। लाखों की संख्या में फर्जी राशन कार्ड हमारे देश में बिखरे पड़े हैं। इनकी विश्र्वसनीयता की स्थिति यहां तक पहुंच गई कि कई जगहों पर अब इन्हें पहचान पत्र के तौर पर मान्यता तक नहीं दी जाती है। जिन लोगों ने फर्जी राशन कार्ड बनाए हैं, उन्हें इसके लिए कोई बहुत बड़ी रकम नहीं मिली होगी। सौ-दो सौ रुपये की रकम ही बहुत होती है ऐसे कामों के लिए और ये काम बाबुओं के ही स्तर से होते हैं। इन्हें बनाने वाले बाबुओं को क्या इस बात का अंदाजा नहीं है कि वे सौ-दो सौ के लालच में कितना गंभीर अपराध कर रहे हैं? क्या वे नहीं जानते कि इन्हीं फर्जी राशन कार्डो के जरिये ड्राइविंग लाइसेंस, वोटर आइडी और पासपोर्ट तक बनवाए जाते हैं? क्या उन्हें यह नहीं मालूम है कि यह बनवाने वालों में कई बंग्लादेशी और पाकिस्तानी नागरिक भी शामिल हैं। लाखों की संख्या में जो बंग्लादेशी और कई पाकिस्तानी जासूस हमारे देश में रह रहे हैं, वे इसी तरह रहे हैं। यह सिर्फ एक बानगी भर है। ऐसे कार्यो और विभागों की सूची बहुत लंबी है, जिन्हें इसीलिए पसंद किया जाता है कि वहां कुछ अतिरिक्त आय की संभावना होती है। इस लिहाज से देखें तो छोटे से छोटा अपराध भी छोटा नहीं है। लेकिन समाज उसे नजरअंदाज करता है। नजरअंदाज इसे हम इसीलिए करते हैं कि इसमें कहीं न कहीं हम खुद शामिल होते हैं। कभी छोटी-मोटी असुविधाओं से बचने के लिए और कभी कुछ ऐसा पाने के लिए जिसके हकदार कानूनन हम नहीं होते हैं। इस तरह रिश्र्वत लेना तो बाद की बात है, लेकिन देने की शुरुआत तो हम ही करते हैं। आखिर क्यों देते हैं हम रिश्वत? क्या समाज में उन लोगों के काम बिलकुल नहीं होते हैं जो रिश्वत नहीं देते हैं? ऐसा एकदम नहीं है। काम उनके भी होते हैं। फर्क सिर्फ यह है कि उन्हें थोड़ा अधिक समय लगाना पड़ता है, कई बार दौड़ना पड़ता है, धूप-बारिश बर्दाश्त करनी पड़ती है। हमें खुद को मानसिक रूप से इन स्थितियों के लिए तैयार करना चाहिए। सच तो यह है कि भ्रष्टाचार के इस गंदे नाले की सफाई हर तरफ एक साथ शुरू करनी पड़ेगी और इसमें सबको लगना होगा। इसमें कोई दो राय नहीं है कि किसी भी सरकारी विभाग में नीचे भ्रष्टाचार तभी होता है, जब ऊपर से इसके लिए अनुकूल माहौल मुहैया कराया गया होता है। बेशक हर बात के लिए बड़े अफसर जिम्मेदार नहीं होते हैं, क्योंकि उनके जिम्मे बहुत सारे काम होते हैं। चाहे सरकारी विभाग हो या निजी क्षेत्र के संस्थान, बड़े अफसरों को कई कागजों पर अपने सहयोगियों पर विश्वास करके हस्ताक्षर करने होते हैं। ठीक इसी तरह छोटे कर्मचारियों को भी किसी बात के लिए पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया नहीं जा सकता है। कई जगहों पर तो बाकायदा यह रिवाज ही है कि नीचे से ऊपर की ओर हिस्सा जाता है। इसलिए भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई भी अभियान तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक कि उसके दायरे में ऊपर से नीचे तक के सभी लोग न लाए जाएं। भ्रष्टाचार के किसी भी मामले को सरेसरे तौर पर देख कर छोड़ा नहीं जाना चाहिए। उसमें शामिल जो भी लोग हों, उनके नाम सामने लाए जाने चाहिए और सभी को समान सजा दिलाई जानी चाहिए। इसके लिए सिर्फ कानून बनाने या सरकारी तंत्र की सक्रियता से ही कुछ खास होने वाला नहीं है। वस्तुत: भ्रष्टाचार का मसला ऐसा है कि इसमें आम जनता से लेकर देश के भाग्यविधाता तक सभी जिम्मेदार हैं। वास्तव में अगर देश के भाग्यविधाता यह चाहते हैं कि भ्रष्टाचार खत्म हो तो उन्हें जनता के अंदर यह आत्मविश्र्वास पैदा करना होगा कि बिना रिश्वत दिए भी सबके काम होंगे। साथ ही, यह भी कि गलत काम कतई नहीं होंगे और अगर गलती से हो भी गए तो जाहिर होने पर जिम्मेदार लोगों को कड़ी सजा मिलेगी। अच्छी बात यह है कि चाहे छोटे-छोटे स्तरों पर ही सही, लेकिन कुछ राज्यों में यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। जहां भी यह शुरुआत हुई है, वहां ऊपर से ही हुई है। कुछ बड़े लोगों ने इसमें व्यक्तिगत तौर पर रुचि ली है। ऐसे मामलों में बड़े लोगों के रुचि लेने की प्रक्रिया हर जगह शुरू करनी होगी। साथ ही आम जनता को भी ऐसी किसी पहल का स्वागत करने के लिए तैयार रहना होगा। देश से भ्रष्टाचार को खत्म करना तभी संभव होगा।

No comments:

Post a Comment