हद के पार अभद्रता

अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ अशालीन टिप्पणियाँ करना प्रायः हमारे सभी दलों के लिए आम बात है। हाँ, वामपंथी दल जरूर इस बीमारी से कुछ हद तक मुक्त माने जाते रहे हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के लिए जारी प्रचार अभियान में वाम दलों के कुछ नेताओं ने अपनी बेलगाम जुबान से अपने बारे में स्थापित इस मिथक को खंडित कर दिया है। इस बार पश्चिम बंगाल में संभावित बदलाव की हवा के बीच हो रहे विधानसभा चुनाव के प्रचार अभियान में भी खासा बदलाव देखने को मिल रहा है। दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वियों सत्तारूढ़ वाम मोर्चा और सत्ता में आने को आतुर तृणमूल कांग्रेस-कांग्रेस गठबंधन के नेताओं के बीच एक-दूसरे के खिलाफ अशालीन टिप्पणियों का जो कर्कश शोर मचा हुआ है उसने राजनीतिक शिष्टाचार तार-तार कर दिया है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के एक वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद अनिल बसु ने तो तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी के खिलाफ जिस तरह की अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है, वह उनकी विकृत सोच को उजागर करने वाली है। वह यह बताने के लिए काफी है कि मार्क्सवाद के कुछ पंडे महिलाओं के प्रति किस कदर मध्ययुगीन सामंती मानसिकता से ग्रस्त हैं। आरामबाग (हुगली) के पूर्व सांसद अनिल बसु ने एक सभा में तृणमूल कांग्रेस को मिल रहे चुनावी चंदे का जिक्र करते हुए ममता बनर्जी की तुलना सोनागाछी की वेश्याओं से की है। उनकी इस अभद्र टिप्पणी से राज्य की राजनीति में तूफान खड़ा हो गया है, जो स्वाभाविक भी है। संतोष की बात यह रही है कि राज्य के मुख्यमंत्री बुद्घदेव भट्टाचार्य ने इस टिप्पणी का संज्ञान लेने और इसके लिए अनिल बसु को फटकार लगाने में जरा भी देर नहीं की। हालाँकि अपने पार्टी नेतृत्व से फटकार मिलने के बाद बसु ने भी अपनी गलती के लिए सार्वजनिक रूप से माफी माँग ली है। लेकिन भट्टाचार्य ने कहा है कि इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल बिलकुल क्षम्य नहीं है और इसके लिए पार्टी बसु के खिलाफ कार्रवाई करेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि भट्टाचार्य के इस रवैये के बाद उनकी पार्टी के नेता संयत भाषा का इस्तेमाल करेंगे और ममता बनर्जी भी अपनी पार्टी के बेलगाम सहयोगियों को ऐसा ही करने को कहेंगी।
             

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