बढ़ती आबादी की चुनौतियाँ

इसमें कोई दो मत नहीं कि देश की बढ़ती जनसंख्या नित नई समस्याओं को जन्म दे रही है लेकिन देश की युवा जनसंख्या को मानव संसाधन के रूप में बदलकर उसे आर्थिक विकास का घटक भी बनाया जा सकता है। भारत की बढ़ी हुई आबादी मानव संसाधन के परिप्रेक्ष्य में हमारे लिए आर्थिक वरदान सिद्ध हो सकती है पर इसके लिए हमें कठिन प्रयास करने होंगे।
बढ़ती आबादी की चुनौतियाँ




इसमें कोई दो मत नहीं कि देश की बढ़ती जनसंख्या नित नई समस्याओं को जन्म दे रही है लेकिन देश की युवा जनसंख्या को मानव संसाधन के रूप में बदलकर उसे आर्थिक विकास का घटक भी बनाया जा सकता है। भारत की बढ़ी हुई आबादी मानव संसाधन के परिप्रेक्ष्य में हमारे लिए आर्थिक वरदान सिद्ध हो सकती है पर इसके लिए हमें कठिन प्रयास करने होंगे। ङ"ख१५ऋ


हाल ही में प्रकाशित वर्ष २०११ की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार भारत की जनसंख्या बढ़कर १२१ करोड़ हो गई है। यह जनसंख्या अमेरिका, इंडोनेशिया, ब्राजील, पाकिस्तान और बांग्लादेश की कुल जनसंख्या से भी ज्यादा है। देश में पिछले एक दशक में १८.१ करोड़ नई आबादी जुड़ गई। दुनिया की कुल आबादी में भारत की हिस्सेदारी १७.५ फीसद है, जबकि दुनिया की कुल जमीन का मात्र २.४ फीसद हिस्सा भारत के पास है। अब जनसंख्या के मामले में भारत १३४ करोड़ की सर्वाधिक जनसंख्या वाले चीन के करीब पहुँच गया है। अमेरिकी एजेंसी पॉपुलेशन रेफरेंस ब्यूरो के अनुसार सन २०५० में भारत जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ते हुए विश्व में सर्वाधिक १६२.८ करोड़ हो जाएगी। यद्यपि नई जनगणना में देश की जनसंख्या की वृद्धि दर में कमी देखी गई है लेकिन तेजी से बढ़ती जनसंख्या देश की आर्थिक-सामाजिक समस्याओं की जननी बनकर देश के विकास के लिए खतरे की घंटी बन गई है। बढ़ती जनसंख्या देश में गरीबी, कुपोषण, शहरीकरण, मलीन बस्ती फैलाव जैसी कई चुनौतियों को बढ़ा रही है।

बढ़ती जनसंख्या से देश में गरीबी और बेरोजगारी छलाँगें लगाकर बढ़ रही है। गरीबी घटाने के सारे लक्ष्य बार-बार चौपट हो रहे हैं। चूँकि गरीब परिवारों में पैदा होने वाले बच्चों की जन्म दर मध्य व उच्च वर्ग से बहुत अधिक है और उनके पास आगे बढ़ने के संसाधन कम हैं अतएव गरीब वर्ग का आकार बढ़ता जा रहा है। विश्व बैंक ने अपने एक अध्ययन में बताया है कि भारत में ४२ फीसद जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करती है। यह भीस्पष्ट है कि बढ़ती आबादी का सीधा संबंध देश में बेरोजगारी बढ़ने से भी है। यही कारण है कि देश में आर्थिक विकास दर नौ फीसद है लेकिन रोजगार के अवसर उतने चमकीले नहीं हैं। देश में बेरोजगारी की दर ७.८ फीसद है।

यद्यपि देश में खाद्यान्ना उत्पादन बढ़ रहा है लेकिन बढ़ती जनसंख्या के कारण उत्पादन वृद्धि आवश्यकता से कम दिखाई पड़ती है। सन २००० तक हम २० करोड़ टन अनाज उत्पादन करते थे और २०२० तक हमें ३६ करोड़ टन अनाज की आवश्यकता पड़ेगी। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल रिलेशन का कहना है कि भारत में खाद्यान्ना की उत्पादकता घटने, ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने, मानसून के धोखे की आशंका, बायोडीजल के लिए अनाज का उपयोग और मोटे अनाज के इस्तेमाल को बढ़ावा न देने के कारण २०११ के बाद देश में सभी के लिए भोजन जुटाना और कठिन हो जाएगा। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (यूएनएफएओ) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में आम आदमी के पास पर्याप्त खाद्यान्ना न होने के कारण भूख और कुपोषण की समस्या बढ़ती जा रही है। भारत में भूख और कुपोषण से प्रभावित लोगों की संख्या विश्व में सबसे अधिक २३ करोड़ ३० लाख है।

बढ़ती जनसंख्या देश की आवास समस्या को भी बढ़ा रही है। आवास की कमी के कारण देश के करोड़ों लोग तनावग्रस्त रहते हैं। आवास एवं शहरी गरीबी निवारण मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार देश में लगभग २.४७ करोड़ मकानों की कमी पाई गई है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन का निष्कर्ष है कि देश की अधिकांश रिहाइशी इकाइयों में बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण आराम व सुख की जगह परेशानी एवं तनाव की स्थितियाँ दिखाई देती हैं। स्थिति यह है कि शहरों में मकानों की कमी के कारण मलीन बस्तियाँ वर्ष-प्रतिवर्ष तेजी से बढ़ती जा रही हैं। दुनिया की सबसे अधिक मलीन बस्तियाँ भारत में हैं। शहरी भारत के लगभग चार फीसद हिस्से पर मलीन बस्तियाँ बनी हुई हैं। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार वर्ष २००९ में देश के ४०० छोटे-बड़े शहरों में रहने वाले ३० करोड़ लोगों में से छः करोड़ से अधिक लोग ५२ हजार मलीन बस्तियों में रहते हैं। इसमें कोई दो मत नहीं है कि मलीन बस्तियों में लोग ढेर सारी कठिनाइयों और बदतर हालातों के बीच नारकीय जीवनयापन के लिए विवश हैं। नई जनगणना में एक चुनौतीपूर्ण परिदृश्य यह भी उभरकर सामने आया है कि देश में लड़कियाँ कम पैदा हो रही हैं या वे पैदा नहीं होने दी जा रही हैं। इसी कारण स्त्री-पुरुष अनुपात बिगड़ता ही जा रहा है। यह अनुपात २०११ की जनगणना में ९१४/१००० का है, जो कि १९४७ के बाद से सबसे कम है। यानी महिला भ्रूण हत्या के खिलाफ जो भी कदम उठाए जा रहे हैं, वे कम ही कारगर सिद्ध हो रहे हैं।

इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश की बेलगाम जनसंख्या वृद्धि नित नई समस्याओं को जन्म दे रही है लेकिन देश की युवा जनसंख्या को मानव संसाधन के रूप में बदलकर उसे आर्थिक विकास का घटक भी बनाया जा सकता है। भारत की बढ़ी हुई आबादी मानव संसाधन के परिप्रेक्ष्य में हमारे लिए आर्थिक वरदान सिद्ध हो सकती है। एक ताजा अध्ययन के मुताबिक भारत की श्रम शक्ति नई वैश्विक जरूरतों के मुताबिक तैयार हो जाए तो वह भविष्य में एक ऐसी पूँजी साबित होगी, जिसकी माँग दुनिया के हर देश में होगी। विकसित देशों और कई विकासशील देशों में वर्ष २०२० तक कामकाजी जनसंख्या की भारी कमी होगी, जबकि भारत में साढ़े चार करोड़ कामकाजी जनसंख्या अतिरिक्त होगी। ऐसे में वर्ष २०२० तक अमेरिका, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, स्पेन और रूस सहित अनेक देशों में कार्यशील लोगों की कमी के कारण लाखों रोजगार के अवसर भारतीय युवाओं की मुट्ठी में होंगे।

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