असम में विधानसभा चुनाव के आहट के साथ ही चुनावी रेवड़ियाँ बाँटने का दौर तेज हो गया है। मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक नई योजनाओं की आधारशिला रखने में व्यस्त हैं तो रोजाना लुभावनी योजनाओं की घोषणा की जा रही है। असमिया दैनिक प्रतिदिन अपनी विशेष टिप्पणी में लिखता है कि यदि सरकार राज्य के विकास के प्रति इतनी गंभीर थी तो जन कल्याण की योजनाओं की घोषणा पहले क्यों नहीं की गई। चुनाव के ठीक पहले कंबल, मच्छरदानी आदि बाँटने की योजनाओं का मतलब क्या है। यह साफ है कि सरकार इन योजनाओं के माध्यम से मतदाताओं को प्रभावित करना चाहती है। अखबार लिखता है कि चुनावी घोषणा लागू न होने से आचार संहिता लागू नहीं हो पाई है। इसलिए मुख्यमंत्री से मंत्री तक दिनभर नई योजनाओं के शिलान्यास में व्यस्त हैं, जबकि अधिकांश योजनाओं के लिए बजट में कोई प्रावधान नहीं है। यह भी संभव है कि सत्ता में परिवर्तन के साथ वे योजनाएँ लागू ही नहीं हो पाएँ। सरकार को काफी पहले योजनाओं का शिलान्यास करना था, ताकि कार्यकाल पूरा होने के पहले योजनाएँ भी पूरी हो जाएँ। हर चुनाव में सत्ताधारी दल ऐसे हथकंडे अपनाते हैं।
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