आज दुनिया के ९१ करोड़ वाहन मालिकों और २०० करोड़ गरीबों के बीच प्रतियोगिता शुरू हो चुकी है। इस प्रतियोगिता ने दुनिया के सामने नैतिक और राजनीतिक सवाल खड़े कर दिए हैं।
एक ऐसे में समय जब मिट्टी व जल संसाधनों की गुणवत्ता में ह्रास के कारण पैदावार घट रही है उसी समय अनाजों को ईंधन में बदलने की बढ़ती प्रवृत्ति ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा के समक्ष गंभीर चुनौती उपस्थित कर दी है। यद्यपि अनाज से ईंधन बनाने की शुरुआत दशकों पहले हो चुकी थी लेकिन इसने २००५ में रफ्तार पकड़ी जब अमेरिका में कैटरिना तूफान के चलते कच्चे तेल की कीमतें ६० डॉलर प्रति बैरेल से ऊपर चली गईं।
२००५ में अमेरिका विश्व के सबसे बड़े एथनॉल उत्पादन ब्राजील को पछाड़कर पहले स्थान पर आ गया। २००९ में तो अमेरिका में उत्पादित कुल ४१.६ करोड़ टन में से ११.९ करोड़ टन अनाज एथनॉल डिस्टिलरियों में गया। अमेरिका के विपरीत योरप में रेपसीड व पाम ऑयल से बायोडीजल बनाने का चलन बढ़ा और वहाँ २००९ में २.१ अरब गैलन बायोडीजल का उत्पादन हुआ। इससे जहाँ एक ओर अनाज की जगह बायोडीजल वाली फसलों को प्राथमिकता मिली वहीं दूसरी ओर योरपीय माँग को पूरा करने के लिए इंडोनेशिया व मलेशिया में वर्षा वनों को साफ कर पाम रोपण किया जाने लगा।
अब तक अनाज और तेल की कीमतें अलग-अलग परिस्थितियों से निर्धारित होती थीं लेकिन कच्चे तेल की बढ़ी कीमतों के कारण दोनों एक-दूसरे से गहराई से जुड़ गईं। यही कारण है कि जैसे-जैसे कच्चे तेल की कीमतें बढ़ रही हैं वैसे-वैसे अनाज की कीमतों में भी उबाल आ रहा है। १९९० के दशक तक खाद्यान्ना की खपत जनसंख्या में बढ़ोत्तरी तथा अनाज आधारित पशुआहार से तय होती थी और उसमें हर साल औसतन दो करोड़ टन की बढ़ोतरी हो रही थी, लेकिन एथनॉल बनाने की बढ़ती प्रवृत्ति के चलते २००५ तक अनाज की वार्षिक खपत में ५.४ करोड़ टन तक की वृद्धि होने लगी। २००६ से २००८ के बीच तो अनाज की खपत में बढ़ोतरी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ते हुए ९.५ करोड़ टन का आँकड़ा छू लिया। संयोगवश २००८ के मध्य में विश्वव्यापी मंदी के चलते कच्चे तेल की कीमतें गिर गईं और उसी के अनुरूप अनाज की कीमतें भी घटीं, लेकिन २००९ के मध्य से कच्चे तेल और अनाज की कीमतों में जो बढ़ोतरी शुरू हुई वह रुकने का नाम नहीं ले रही है। इस प्रकार आज दुनिया के ९१ करोड़ वाहन मालिकों और २०० करोड़ गरीबों के बीच प्रतियोगिता शुरू हो चुकी है। इस प्रतियोगिता ने दुनिया के सामने नैतिक और राजनीतिक सवाल खड़े कर दिए हैं कि भूखे पेट व ईंधन की टंकी में किसे प्राथमिकता दी जाए। भले ही नैतिकता का पलड़ा भूखे पेट की ओर झुका हो लेकिन बाजार अनाज से ईंधन बनाने का पक्ष ले रहा है। इसका कारण है कि जहाँ २०० करोड़ गरीबों की प्रतिव्यक्ति औसत वार्षिक आय एक हजार डॉलर से भी कम है वहीं ९१ करोड़ वाहन मालिकों की प्रतिव्यक्ति आय ३०,००० डॉलर से ज्यादा।
No comments:
Post a Comment