मुंबई का आतंकी हमला हमारे देश पर हुआ हमला था, जिससे पूरी दुनिया सन्ना रह गई थी। २६/११ के आतंकवादी हमले के एक दोषी अजमल कसाब को ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई फाँसी की सजा को बरकरार रखकर बंबई हाई कोर्ट ने देश के करोड़ों लोगों की भावनाओं का सम्मान किया है, हालाँकि किसी को भी आज यकीन नहीं है कि कसाब को निकट भविष्य में सचमुच फाँसी पर लटका ही दिया जाएगा। लोगों ने कसाब और अन्य पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा इस देश के निर्दोष नागरिकों की नृशंस हत्या के सीन खुद अपनी आँख से टीवी के माध्यम से देखे थे।, क्योंकि कसाब की तरफ से न केवल सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाएगी, बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले की पुष्टि भी कर दी तो उसकी ओर से राष्ट्रपति से दया की अपील भी की जाएगी। राष्ट्रपति ने अभी तक संसद पर हमले के लिए जिम्मेदार अफजल गुरु की दया याचिका पर ही कोई फैसला नहीं दिया है और केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम तर्क देते हैं कि अफजल गुरु से पहले २१ अन्य अपराधियों की याचिकाओं पर फैसला होना है। इससे जनता के मन में यह धारणा बनी है कि हमारी सरकार आतंकवादियों को मौत की सजा देने के मामले में भी बहुत फूँक-फूँक कर कदम उठाती है, जिससे आतंकवाद से निपटने के बारे में हमारी छवि एक सॉफ्ट-स्टेट की बनकर रह गई है, जो आतंक-वादियों को हतोत्साहित करने की बजाय उन्हें प्रोत्साहित ही करती है। मसलन अगर हमने मौलाना मसूद अजहर को ठिकाने लगा दिया होता तो न तो १९९९ में हमारे यात्री विमान का अपहरण करके उसे कंधार ले जाया गया होता और न हमें अपने यात्रियों के बदले मसूद अजहर समेत अन्य खूँखार आतंकवादियों को रिहा करना पड़ता। इसलिए सरकार का यह फर्ज है कि वह जन भावनाओं को समझे और अजमल कसाब की सजा को जल्दी से जल्दी उसकी तार्किक परिणति तक पहुँचाए। वैसे भी मुंबई का आतंकवादी हमला हमारे देश पर हुआ हमला था, जिसकी नृशंसता देखकर पूरी दुनिया सन्ना रह गई थी। इसके लिए अगर हमें अपनी न्यायिक प्रक्रिया में परिवर्तन करना पड़े तो वह भी हमें करना चाहिए। बंबई हाई कोर्ट ने कसाब के भारतीय सहयोगियों फहीम अंसारी और सबाउद्दीन अहमद के खिलाफ अभियोजन पक्ष द्वारा जुटाए गए सबूतों का संज्ञान लेकर सुप्रीम कोर्ट में उनके खिलाफ याचिका दायर करने का तर्क और मजबूत कर दिया है, हालाँकि अभियोजन पक्ष हाई कोर्ट में इन सबूतों को मुकदमे से जुड़े साक्ष्य के रूप में साबित नहीं कर पाया। मुंबई के हमले को लेकर पाकिस्तान बेनकाब हो चुका है, मगर पाकिस्तान सरकार इस हमले के मास्टर माइंड लश्कर-ए-तोइबा के नेता हाफिज सईद और लश्कर-ए-झंगवी के आतंकवादी जकी-उर-रहमान लखवी को भारत को सौंपने के लिए तैयार नहीं है। इस मामले में अमेरिका में भी एक मुकदमा चल रहा है, जिसमें आईएसआई के प्रमुख शूजा पाशा का नाम सामने आया है। यानी अजमल कसाब तो मात्र एक मोहरा है, हमले के असली सूत्रधार तो पाकिस्तान में सुरक्षित बैठे हैं। जब तक उन्हें सजा नहीं मिलेगी, मुंबई जैसे हमले होते रहेंगे।
इसलिए बंबई हाई कोर्ट के फैसले पर की गई त्वरित टिप्पणियाँ और बहसें सुनकर उनके मुँह से यही निकल रहा है कि कसाब को तभी मौत के घाट उतार दिया गया होता तो आज यह दिन न देखना पड़ता
इसलिए बंबई हाई कोर्ट के फैसले पर की गई त्वरित टिप्पणियाँ और बहसें सुनकर उनके मुँह से यही निकल रहा है कि कसाब को तभी मौत के घाट उतार दिया गया होता तो आज यह दिन न देखना पड़ता
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