कौन बेटी चाहेगी ऐसे पिता का साथ

यह हमारे समाज की विडंबना है कि बच्चा भी वैध और अवैध होता है। यद्यपि सहमति और असहमति का अर्थ होता है कि स्त्री-पुरुष ने सहमति से अपने बच्चे को जन्म दिया है या वह महज मिलन का नतीजा है।



सामूहिक बलात्कार की शिकार लुधियाना की एक महिला ने हाई कोर्ट में केस दायर किया है। इस घटना के बाद वह गर्भवती हो गई तथा बेटी को जन्म दिया। पीड़िता ने अपनी याचिका में माँग की है कि बलात्कार के सभी आरोपियों की डीएनए जाँच करवाई जाए ताकि वह अपनी बेटी को अपने पिता का नाम दे सके। उसने कहा कि अगर बड़ी होकर बेटी अपने पिता को जानना चाहे तो मैं क्या जवाब दूँगी। पुलिस पर मामले को दबाने का आरोप है तथा एक भी आरोपी अभी तक गिरफ्तार नहीं हुआ है जबकि पीड़िता ने एक आरोपी का नाम भी बताया था। कोर्ट ने याचिका पर पंजाब सरकार तथा लुधियाना पुलिस कमिश्नर को मार्च महीने तक जवाब दाखिल करने को कहा। पहले तो पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की, बाद में उच्च अधिकारियों के दबाव में २ मार्च २०१० को केस दर्ज हो गया, लेकिन सालभर बीत जाने के बाद भी किसी की गिरफ्तारी नही हुई ।

सवाल है कि वह युवती ऐसे इंसान को क्यों पहचानना चाहती है जो उसके साथ बलात्कार करने वाले कई लोगों में शामिल रहा है। इन अपराधियों में से कोई एक उसकी बेटी का पिता है लेकिन क्या वह पिता समझे जाने के लायक है? उन सबके हवस की शिकार बनने के दुष्परिणामस्वरूप उसे बच्ची पैदा हुई। निश्चित है कि बच्ची को माँ-बाप दोनों का प्यार उस महिला को ही देना होगा और बड़ी होकर उससे वास्तविकता छिपाने का कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि जब भी उसे वास्तविकता का पता चलेगा तो वह पिता को पिता नहीं मान पाएगी, भले ही वह जैविक रूप से उसी शख्स की बेटी हो। सर्वप्रथम सभी दोषियों को पकड़ा जाना तथा उन्हें दंडित किया जाना चाहिए।

यह हमारे समाज की विडंबना है कि बच्चा भी वैध और अवैध होता है। यद्यपि सहमति और असहमति का अर्थ होता है कि स्त्री-पुरुष ने सहमति से अपने बच्चे को जन्म दिया है या महज मिलन का नतीजा है वह बच्चा। बच्चे तो कर्ई बार कुछ परिवारों में भी सहमति से पैदा नहीं होते हैं, फिर भी वे नाजायज नहीं होते। लेकिन उक्त घटना में तो क्रूर अपराध का परिणाम है वह।

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी एक मामले में बलात्कार के तीन दोषियों की सजा में रियायत दे दी थी क्योंकि दोषियों ने दावा किया कि पीड़िता से उनका समझौता हो गया है। समझौते में प्रत्येक ने अपने अपराध के लिए पीड़िता को पचास हजार रुपए का जुर्माना अदा किया है। सवाल है कि यदि अपराध साबित हो जाता है तब भी इस प्रकार लेन-देन करके या शादी की इच्छा जताकर या फिर किसी प्रकार का दबाव डालकर सजा में ढील दिया जाना कहाँ तक उचित है?

यदि समाज प्रगति करता और सभ्य बनता तो कोई बच्चा कैसे पैदा हुआ, यह कोई मुद्दा नहीं होता बल्कि मुद्दा यह होता कि बच्चे का पालन-पोषण अच्छी तरह हो रहा है या नहीं ।

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