मुझे आज तक यह समझ में नहीं आया कि कविता और बजट में क्या संबंध है। कहाँ रूखा-सूखा बजट और कहाँ कोमल कविता। एक खलनायक अमरीशपुरी, तो दूसरी मासूम ऐश्वर्या राय। बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री ऐसे जोश में कविता पढ़ता है जैसे वह संसद या विधानसभा में नहीं, लाल किले से कविता पढ़ रहा हो। भले ही वह कविता का क, ख, ग न जानता हो पर कविता अवश्य पढ़ेगा मानो कविता के बगैर बजट अधूरा रह जाएगा।
बजट में कविता सुनाकर शायद वित्तमंत्री यह जताने की कोशिश करता है कि वह भी बहुत बड़ा कवि या साहित्य-प्रेमी है। साहित्य का अलग नोबेल पुरस्कार उसे ही मिलने वाला है। अब यही तो मौके होते हैं कविता सुनाने के, क्योंकि श्रोता थोक में जो मिल जाते हैं।
यह खोज का विषय हो सकता है कि कविता का कीड़ा वित्तमंत्री को ही क्यों काटता है? बाकी मंत्रियों को क्यों नहीं। आखिर उस व्यक्ति में ऐसे कौन से सुर्खाब के पंख लगे होते हैं कि वित्तमंत्री बनते ही उसे कविता पाठ का शौक चर्राने लगता है। मैं सोचता हूँ कि बजट नहीं होता तो वित्तमंत्री क्या करता, कहाँ कविता सुनाता? क्या उसके लिए विशेष सत्र बुलाया जाता? अब कवियों का क्या, न मौका देखते हैं न मौसम और न स्थान। जहाँ भी कोई शिकार मिला कविता पाठ शुरू। भले ही वह चाय की टपरी क्यों न हो, पर वित्तमंत्री को कविता सुनाने के लिए बजट सत्र का इंतजार करना पड़ता है। मैं तो कहता हूँ कि बजट में कविता की घुसपैठ देखते हुए कविता पाठ को ही वित्तमंत्री की योग्यता का पैमाना बना देना चाहिए। बजट में कविता उसी प्रकार है जैसे बलि से पहले बकरे को दिया गया चारा और चिड़िया को जाल में फँसाने के लिए डाला गया दाना। वित्तमंत्री कविता में हवाई सपने दिखाते हुए कर की छुरी जनता की गर्दन पर चलाता रहता है। बजट में कविता मखमली जूता है जो जनता के सिर पर चलता रहता है और खानेवाले को पता भी नहीं चलता। इधर जनता कविता और शेरो-शायरी में खोई रहती है और उधर वित्तमंत्री बजट की कड़वी खुराक पिलाता रहता है। बजट में किया गया वादा पूरा न होने पर वित्तमंत्री यह कहकर अपनी दमड़ी बचाने की कोशिश करता है-
तुम ये न समझ लेना कि हम वादा शिकन निकले,
कुछ देर तो लगती है वादों को निभाने में।
और वादे हकीकत में न बदल पाने से खफा जनता कहती है -
वादा तेरा वादा
वादे पे तेरे मारा गया
बंदा मैं सीधा साधा। खैर, सरकार यदि किसी कवि को वित्तमंत्री बनाने पर विचार कर रही हो, तो मेरे नाम पर विचार किया जा सकता है। आखिर मैंने भी कविताएँ लिखी हैं। क्या मैं वित्तमंत्री पद नहीं पा सकता? आपका क्या खयाल है
No comments:
Post a Comment