सत्यमेव का सच!

 सत्य की महिमा कौन नहीं जानता? कहते हैं कि सच परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं। गांधी आजीवन सत्य के साथ प्रयोग करते रहे और बहुतों का मानना है कि उनके सत्याग्रह ने अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। आजाद भारत के निर्माताओं ने शायद इसे ही ध्यान में रखकर राष्ट्र का आदर्श वाक्य चुना सत्यमेव जयते। जल्दी ही थाने-कचहरियों से लेकर तमाम सरकारी इमारतों और दफ्तरों पर तीन सिंहों के सिर वाले अशोक स्तंभ के ठीक नीचे यह आदर्श वाक्य चुन दिया गया। यह और बात है कि इन सरकारी इमारतों में सच का गला सबसे ज्यादा घोंटा गया। समय के साथ सच परेशान ही नहीं, पराजित दिखने लगा। कुछ इस हद तक कि लोगों की निराशा और हताशा बेकाबू होने लगी। उनका गुस्सा अलग-अलग शक्लों में फूटने लगा। इस तरह स्टेज पूरी तरह सेट हो चुका था। यदा-यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत यानी अब भारत को जरूरत थी एक अवतार की जो उसे इस अधर्म से निकाले और सत्य की जीत में खोई आस्था को बहाल करे। अब समय बदल चुका है। यह कलियुग यानी मीडियायुग है। इस युग में अवतार पैदा नहीं होता, बल्कि गढ़ा जाता है। मानिए या नहीं, आज मीडिया ही नायक बनाता है वही खलनायक तय करता है। मीडिया के कंधे पर चढ़ पहले अन्ना हजारे आए भ्रष्टाचार के खिलाफ युद्ध का ऐलान करते हुए। उनके पास भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए एक जादू की छड़ी थी लोकपाल। रातों-रात तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें भ्रष्टाचार से आजादी दूंगा के नारे गूंजने लगे। नतीजा, चैनलों पर देश हिलने लगा, भावनाएं उबलने लगीं। लगा कि क्रांति अब हुई कि तब हुई, लेकिन अफसोस क्रांति नहीं हुई। हां, लोगों के मन का गुबार जरूर निकल गया। अलबत्ता, थोड़ी कसक रह गई। अब वह कसक पूरी करने अभिनेता आमिर खान आए हैं। यह कहते हुए कि जब दिल पर लगेगी, तभी बात बनेगी। यह रियलिटी-टाक शो हर रविवार को दिन में 11 बजे दिखाया जाएगा। जबरदस्त प्रचार और मार्केटिंग अभियान के साथ शुरू हुए सत्यमेव जयते के पहले एपीसोड में आमिर ने कन्या भ्रूण हत्या के मुद्दे को खूब जोरशोर से उठाया। इसमें कुछ तथ्य और तर्क थे और बहुत ज्यादा भावनाएं और आंसू। सबसे बढ़कर मुद्दे का तुरता और आसान फास्टफूड समाधान है। इस तरह दर्शकों के लिए विरेचन (कैथार्सिस) का पूरा इंतजाम है। नतीजा बात दिल पर ही लगी और मीडिया पंडितों की मानें तो बात बन भी गई और सत्यमेव जयते को टीवी का नया गेम चेंजर मान लिया गया।

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