आखिर सोहबत का असर तो आएगा ही ना




विभाग में इस मुद्दे पर मतभेद नहीं है कि घूस खाकर ही डॉगी ने विश्वासघात किया। उसे तो डॉगी का शुक्रगुजार होना चाहिए कि उसने परंपरा का निर्वाह किया है। परंपरा, संस्कृति का अंग है। डॉगी ने संस्कृति के अभिरक्षक होने की अहम्‌ भूमिका निभाई है।

पिछले दिनों मजेदार खबर आई कि सूचना मिलते ही हत्या और लूट के बाद लुटेरे चंबल की दुर्गम घाटियों में जा छिपे हैं, पुलिस दल भिंड-मुरैना की ओर रवाना हो गया। दल में एक खोजी कुत्ता भी था। हुआ यूँ कि लुटेरों की खोज में निकली टीम का डॉगी चलती जीप से कूदकर जंगल में भाग गया। भागा भी ऐसा कि ढूँढे नहीं मिला। उसके गुम हो जाने एफआईआर दर्ज करने में थानेदार ने काफी आनाकानी की। पुलिस द्वारा लिखाई जा रही शिकायत पर ली गई आपत्ति पर आश्चर्य करने पर थानेदार का जवाब था कि वह आदत से लाचार है। बिना हीला-हवाला किए रपट लिखने पर अपराध-बोध से भर आता है। पिछली बखत वालिद साहब आए थे, रपट लिखाने। तब भी हथेली बुरी तरह खुजलाने लगी थी।

डॉगी पुलिस विभाग में प्रशिक्षित था। उसकी खुराक, वेतन निश्चित-निर्धारित था। एक अटेंडेंट उसके साथ रहता था। उस बेचारे को कभी अंडा-ब्रेड नसीब नहीं हुआ। वह ललचाई दृष्टि से कुत्ते को हड्डी चूसते देखता था और अपनी फूटी किस्मत को कोसता था। अगले जनम में कुत्ते की योनि पाने की प्रार्थना प्रभु से करता था। पुलिस-दल चकित था कि वफादार प्राणी होने के बावजूद डॉगी धोखा देकर क्यों भागा? पुलिस की सोहबत का असर तो नहीं? बरसों से पुलिस के सत्संग में था। कान खड़े कर सब कुछ सुनता था। यह भी संभव है कि डॉगी ने दूसरे पक्ष से हाथ (या पैर जो भी आप कहना चाहें) मिला लिया हो। विपक्ष ने मांस के लोथड़े डाले हों और डॉगी फलाँग गया हो! गोश्त की गंध आ गई हो और उसने पाला बदल दिया हो। हेड कांस्टेबल ने संभावना जताई कि डॉगी को कोई कुतिया दिख गई हो और वह रस्सी तुड़ा कर भाग गया हो! डॉगी का पता न चला तो महकमे वाले अपनी वाली पर आ गए। जानते हैं, कुत्ते को मारना हो तो उसे बदनाम करो। कुत्ते की जात, आखिर अपनी औकात दिखा गया। हड्डी फेंकते ही दुम हिलाने लगता है। कुत्ते की सोहबत का ही असर कि इधर आदमी भी दुम हिलाने में माहिर हो गया है।

चरणों में लोटने की कला भी शायद श्वान से ही सीखी है। लोग उन लोगों के चरणचूम रहे हैं जो दरअसल लात खाने-योग्य हैं। विभाग मानता है कि घूस खाकर ही डॉगी ने विश्वासघात किया। डॉगी ने तो परंपरा का निर्वाह किया है। परंपरा, संस्कृति का अंग है। डॉगी संस्कृति के अभिरक्षक होने की अहम्‌ भूमिका निभाई है। थैंक्स डॉगी। लोकायुक्त विभाग प्रमुख का कथन है कि वह घूसखोर को रंगे हाथों पकड़ता है। डॉगी के पैर ही पैर हैं, हाथ हैं ही नहीं। दूसरा यह कि हड्डियाँ दूसरे पक्ष की थीं। वे अपने द्वारा दिए गए नोटों की तरह उन पर रसायन नहीं लगा सकते थे। तीसरा यह कि डॉगी, पहले ही भाग चुका है। समझ रहे हैं न आप? ये तमाम तकनीकी मुश्किलें हैं। कानूनी मुश्किलें इनसे अलहदा हैं।ताजा खबर यह है कि डॉगी जंगल में बब्बर शेर बना घूम रहा है और उन्हीं के लिए पहरेदारी कर रहा है जिनकी खोज में वह निकला था।

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