बासु ने सभी की बोलती बंद कर दी

फिल्मकार बासु भट्टाचार्य के एक शिक्षक पूर्वी बंगाल से विस्थापित होकर भट्टाचार्य पाड़ा आए थे। बासु तथा अन्य छात्र उन्हें काफी पसंद करने लगे । १३ साल के बासु दुर्गा-पूजा के समय बड़ों को प्रणाम करने की परंपरा निभाते हुए अपने मित्रों के साथ मास्टरजी के पैर छूने गए। छात्रों में बासु के अलावा एक और ब्राह्मण था जबकि मास्टरजी दलित थे। बासु ने तो मास्टरजी के पैर छू लिए लेकिन ब्राह्मण छात्र वहाँ से लौट गया। बासु घर पहुँचे तो उनके घर पंडित एकत्र हो चुके थे जिन्हें ब्राह्मण बासु द्वारा दलित के पाँव छूना नागवार गुजरा था। बासु को बुलाकर उनके चाचा ने पूछा-कहाँ से आ रहे हो ? बासु ने जवाब दिया मास्टरजी को प्रणाम करके। वहाँ मौजूद ब्राह्मणजन एकदम फट पड़े और मास्टरजी को प्रणाम करने पर सवाल उठाने लगे। तभी बासु को अपने चाचा की बात याद आई।  बासु ने कहा कि मैंने अपने पिता को ही प्रणाम किया है। उन्होंने अपने चाचा से कहा कि आपने ही बताया था कि ब्राह्मण के तीन पिता होते हैं-जन्म पिता, दीक्षा पिता और शिक्षा पिता। मास्टरजी मेरे तीसरे शिक्षा-पिता हैं। इसलिए मैंने उन्हें प्रणाम किया। सभी की बोलती बंद हो गई।

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