मदिरापान का मायाजाल

पिछले दिनों रूस में यह निर्णय लिया गया कि आने वाले तीन सालों के दौरान वोदका (शराब की एक खास किस्म) पर कर बढ़ाकर तीन गुना किया जाएगा। इसकी मुख्य वजह यह है कि रूस में लोग शराब का सेवन ज्यादा करने लगे हैं। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि दुनिया में औसत रूप से से एक व्यक्ति साल भर में पांच लीटर शराब पीता है, जबकि रूस में औसत रूप से एक व्यक्ति एक साल में 18 लीटर शराब पी जाता है। इसका नकारात्मक असर वहां के लोगों की औसत आयु पर भी देखने को मिलता है। रूस में पुरुषों की औसत आयु करीब 60 साल है। यह भी कम दुखद नहीं है कि रूस में सालाना 40,000 लोगों की मौत अल्कोहल विषाक्तता के कारण होती है। साथ ही यह भी कम दुखद नहीं है कि रूस में 50 फीसदी अकाल मौतें शराब की वजह से ही होती हैं। जहां तक भारत में शराब की खपत का सवाल है तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, हमारे देश में एक व्यक्ति एक साल में दो लीटर से कम शराब पीता है, लेकिन केरल में शराब की खपत राष्ट्रीय औसत से करीब चार गुना अधिक है। केरल में औसतन एक व्यक्ति एक साल में आठ लीटर शराब पीता है। इसके बाद पंजाब दूसरे नंबर पर है, जहां एक व्यक्ति एक साल में 7.9 लीटर शराब पीता है। केरल में रम या ब्रांडी प्राथमिकता में है, लेकिन देश में व्हिस्की को अधिक पसंद किया जाता है। वैसे प्रति व्यक्ति शराब खपत के मामले में भारत का स्थान दुनिया में काफी नीचे (150वां) जरूर है, लेकिन भारत शराब उत्पादन के मामले में दुनिया के अग्रणी देशों में एक है। अल्कोहल एटलस ऑफ इंडिया के मुताबिक, भारत में सालाना दो अरब 30 करोड़ लीटर शराब का उत्पादन होता है और इसकी खपत के मामले में हमारा देश दक्षिण एशिया के देशों में सबसे आगे है। लाजिमी है कि इससे सरकार को काफी राजस्व की प्राप्ति होती है, लेकिन शराबखोरी का सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है। साथ ही इसके सेवन का विपरीत असर सामाजिक और पारिवारिक कलह के रूप में भी सामने आता है। केरल की अर्थव्यवस्था की मजबूती में शराब का अच्छा खास योगदान है। आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्य के कुल वार्षिक बजट में करीब 35 प्रतिशत हिस्सा शराब की बिक्री से आता है। केरल स्टेट बेवरेज कारपोरेशन के मुताबिक, 2004-05 में राज्य में 2,320 करोड़ रुपये की मदिरा की ब्रिकी हुई, जो 2009-10 में बढ़कर 5538.90 करोड़ रुपये हो गई। इस दौरान राज्य में शराब की बिक्री दोगुना से ज्यादा हो गई। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट का अध्ययन बताता है कि राज्य में केएसबीसी ही एक ऐसी सार्वजनिक इकाई है, जो लगातार लाभ में है। स्टडी में यह भी कहा गया है कि राज्य में मदिरा की बिक्री से होने वाला लाभ केएसबीसी के अनुमान को भी पार कर गया। केरल में शराब सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति की कई वजहें हैं, लेकिन इसकी एक वजह दुनिया के अन्य देशों में बसे केरलवासियों द्वारा दूसरे देशों से भेजा गया पैसा है। करीब 20 लाख केरलवासी दुनिया के कई देशों में रहते हैं। वहां से सालाना 40,000 करोड़ रुपये केरल में आता है। ज्यादातर केरलवासी खाड़ी के देशों में हैं। साथ ही राज्य में आर्थिक विकास, जनसंख्या का बदलता समीकरण भी इसके लिए जिम्मेदार है। एक गैर सरकारी संस्था अल्कोहल एंड ड्रग इंफॉर्मेशन के मुताबिक, राज्य में 1986 में मदिरा पीने की शुरुआत करने की औसत आयु 19 साल थी, जो 2001 में घटकर 13 साल हो गई। इसके अलावा राज्य में बढ़ रहे विदेशी पर्यटकों की संख्या और शराब के नियमन में ढिलाई के कारण भी राज्य में शराब की खपत बढ़ती जा रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि शराब के प्रति बढ़ते रुझान का समाज, परिवार और स्वास्थ्य पर काफी विपरीत असर पड़ रहा है। शराब अधिक मात्रा में पीने के कारण लोग शराब से संबंधित रोगों का शिकार हो रहे हैं और कितने ही लोग इस शराब की वजह से वक्त से पहले काल के ग्रास बन जाते हैं। कभी-कभी तो लोग जहरीली शराब पीने के कारण अपनी जान गंवा बैठते हैं। पिछले साल जहरीली शराब के कारण केरल के मलप्पुरम जिले में 26 लोगों की मौत हो गई थी। बीते तीन दशकों के दौरान जहरीली शराब पीने के कारण 250 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। सामाजिक विश्लेषकों का मानना है कि शराब के प्रति बढ़ती प्रवृत्ति की वजह से न सिर्फ सड़क दुर्घटनाओं में इजाफा होता है, बल्कि इससे सामाजिक समस्याएं भी बढ़ती हैं। उदाहरण के तौर परघरेलू हिंसा और तलाक के मामलों में बढ़ोतरी। इस कारण राज्य में सालाना 4,000 से अधिक लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा बैठते हैं। यहां यह भी काबिले गौर है कि राज्य में मानसिक रोग से पीडि़त लोगों की औसत संख्या राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है। यह बातें केरल जैसे प्रगतिशील राज्य के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि शराब के प्रति बढ़ती प्रवृत्ति एक सामाजिक असफलता ही मानी जा सकती है। कभी आंध्र प्रदेश में भी लोगों का अल्कोहल के प्रति रुझान बढ़ गया था। उस दौरान 1992 में महिलाओं द्वारा अल्कोहल विरोधी आंदोलन चलाया गया। यही कारण है कि आज किसी भी तरह के अल्होकल की बिक्री और इसकी खपत राज्य में दंडनीय अपराध है। इसके पहले राज्य में सरकार द्वारा वरुणावाहिनी नीति को समर्थन प्राप्त था और ग्रामीण इलाकों में अरक (मदिरा की एक किस्म) की आक्रामक मार्केटिंग देखी गई। इस नीति से अरक पर एक्साइज ड्यूटी से राज्य के 1991-92 वार्षिक के राजस्व में 10 फीसदी से अधिक की हिस्सेदारी थी। यह अलग बात है कि राज्य सरकार की मदिरा प्रतिबंध की नीति पर आज तक सवाल उठाया जा रहा है, लेकिन महिलाओं के आंदोलन का राजनीतिक प्रभाव स्पष्ट है। यह संघर्ष महिलाओं के स्वतंत्र समूह द्वारा शुरू किया गया, जिसका उद्देश्य केवल इतना था कि अरक को गांव के भीतर नहीं आने दिया जाएगा। इसके लिए ग्राहकों को नहीं, बल्कि इसके सप्लायर और व्यापारियों को निशाना बनाया गया और इसमें औरतों को बहुत सारे पुरुषों का भी सहयोग मिला। इससे राज्य में राजनीतिक रूप से अल्कोहल के ऊपर प्रतिबंध लगा दिया गया। आज हमारे देश में शराब पीने की प्रवृत्ति जिस तरह से बढ़ती जा रही है, वह चिंता का विषय है इसलिए लोगों में इस बात के लिए जागरूकता फैलाने की जरूरत है कि शराब के अधिक सेवन के क्या-क्या नुकसान होते हैं। साथ ही शराब पर अधिक कर लगाने की जरूरत है ताकि लोग शराब का सेवन कम करने के लिए खुद ही प्रेरित हों। ऐसा संभव है, क्योंकि कुछ साल पहले दिल्ली में शराब की खपत लगभग मुंबई के बराबर थी, लेकिन पिछले दो साल से आयातित शराब के ऊपर एक्साइज ड्यूटी को बढ़ाया गया और घरेलू शराब के न्यूनतम लेबल के पंजीकरण शुल्क में भी वृद्धि की गई। इससे शराब की खपत में कमी देखी गई। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि शराब के अधिक सेवन का विपरीत असर हमारी सोच और सेहत दोनों पर पड़ता है। इसलिए बेहतर भविष्य के लिए शराब के सेवन को कम करना ही होगा।

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