'किस-किस के कुएँ में रस्सी डालोगे'


गुजरती ठंड में मिर्जा फकत लुंगी-बनियान पहने, हाथ में पकड़ी हुई शीशी से तोंद पर तेल की मालिश फेर रहे थे! तोंद सिंके हुए नगाड़े जैसी लाइट मार रही थी! मुझे देखकर बोले-"आओ लल्ला, बसंत आ लगा है। पतझड़ तो उनकी होगी जो चुनाव नतीजे आने के बाद सूखे पत्तों जैसे हवा में उड़ेंगे। तीन जश्न मनाएँगे, ३३ के घर यों मातम छाया रहेगा जैसे बाप अभी ताजा-ताजा मरा हो! नाम की सही स्पेलिंग आती नहीं और भर दिया फारम कि हम भी लड़ेंगे ताल ठोंक कर! जमानत जब्त हो जाने पर घर के एक कोने में पुराने टूटे फर्नीचर जैसे पड़े रहेंगे! हाय, जिनने हमारे नाम पर चाय-समोसे उड़ाए, बटन दबाते पर ठेंगा दिखा गए। यह पब्लिक निगोड़ी भी बड़ी लतिहड़ चीज है! सही नुमाइंदा चुनना जानती ही नहीं, हम जीतते तो मोहल्ले की नाली बनवा देते, बेवाओं को साड़ी बँटवा देते, जो बेवा नहीं है उसे बेवा करा देते, मंदिर के नाम पर थोड़ी बहुत जमीन खींच लेते और चार पैसे अपने खीसे में डाल लेते! पर हाय, ऊँट गलत करवट बैठ गया! अब किसके बाप को बाप कहें!"

मिर्जा ने लंबी टोपी तले से मटर की चंद फलियाँ निकालीं और छीलकर दाने टूँगते हुए बोले-"कुछ और सुना लल्ला...शद्दन तंबोली कने सिर्फ दो वोट हैं...अपना और बीवी का! फिर भी शेरवानी का कपड़ा नपवा आए हैं कि असेंबली में जरा बन-ठनकर बैठना है! जिसे सरकार बनानी होगी वह सौ बार गिनती पूरी करने के तईं हमारे मोजे चूमेगा! हो सकता है कि छोटा-मोटा मवेशी खाने का मंत्री बनाने का भी वादा कर दे! इस देश में गिनती पूरी करने के लिए अगला क्या नहीं कर सकता, लल्ला! ऐसे में उन छुटभय्यों की बन आती है, जिनकी एक इंच की फोटो भी आज कोई पेपर नहीं छाप रहा है! लग गया गुंताड़ा तो धायं से पूरी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डालेंगे! पीतल के सोना बनने के दिन आ रहे हैं, मियाँ!"

पोरों पर चार बूँद तेल लेकर तोंद की मालिश करते हुए बोले-"लो और सुनो! चुनाव आयोग ने कहा है कि इस बार चुनाव में काले धन का इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा। तो फिर चुनाव क्या थाली, पतीली और बीवी के कंगना बेचकर लड़ेंगे? काला धन होता काहे को है? लगाओ और जीतकर मोर कालाधन कमाओ! मेहनत-ईमान का सफेद धन होता तो कोई ढंग का धंधा न अपनाते? मलाई ही निकाल लोगे साहब तो क्या छाछ पिलाने से वोट मिलेंगे? हजारों प्रत्याशी, अरबों का माल। सुई की नोंक से कहाँ तक कुओं को खोदोगे! किस-किस कुएँ में रस्सी डालोगे? वोटर को घी में लपेटने के पचासों तरीके हैं!"

"बड़ी छीछालेदर मची भई है, लल्ला! कोई नामीगिरामी एक पार्टी से निकाले गए तो दूसरी ने क्रिकेट गेंद जैसा लपक लिया! अब दूसरी पार्टी में हड़कंप मची हैगी कि इन्हें क्यों लिया! ये दागी हैं! सुभानल्लाह, इतना ही नहीं समझते कि राजनीति में कोई बंदा दागी नहीं होता। सौ-पचास करोड़ की खींचतान से दाग नहीं लगता! दाल में हींग बराबर इनका पैदायशी हक बनता है! कोई दफ्तर के क्लर्क हैं कि बोनस देना, न देना सरकारी मर्जी! चुनांचे माई डियर लल्ला, घमासान जारी है! नंगा नाच चालू आहे! इलेक्शन कमीशन का कृष्ण कहाँ तक चीर की रक्षा करेगा! जो ढक्कन खोला उसी के तले जिल्लत और बेईमानी बजबजाती मिली! अब मैं चलूँ! जरा चार लोटे पानी से खुद भी नहा लूँ, तोंद को भी फ्रेश कर दूँ!

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