पिछले साल राष्ट्रमंडल खेलों के चलते दिल्ली से भिखारियों को पकड़कर उनके जन्म स्थान पहुँचाने का अभियान, दिल्ली सरकार ने चलाया था। लेकिन एक साल बाद स्थिति जहाँ थी वहीं पहुँच गई है। ङ"ख१४ऋ
यूँ तो सारे देश में भीख माँगकर गुजारा करने वाले करोड़ों की तादाद में हैं लेकिन देश के बड़े शहरों में तो यह एक उद्योग की तरह फलफूल रहा है। दिल्ली और देश के दूसरे शहरों में इसने उद्योग का रूप ले लिया है। इस उद्योग का संचालन माफिया-समूहों के जरिए किया जा रहा है। सरकारी आँकड़े के मुताबिक महज दिल्ली में साठ हजार से ज्यादा लोग इसमें लगे हुए हैं। इसमें से ३० फीसद १८ साल की उम्र से कम के हैं। इस उद्योग में लगभग ७० फीसद पुरुष और लगभग ३० फीसद महिलाएँ लगी हुई हैं। वहीं पर एनजीओ के सर्वे के मुताबिक एक लाख से ज्यादा लोग भीख माँगने के पेशे में लगे हुए हैं और यह तादाद लगातार बढ़ती ही जा रही है।
सर्वे रपट के मुताबिक दिल्ली में मजबूरी या अभाव की वजह से भीख माँगने वालों की तादाद बहुत ही कम है। माफिया-समूहों के जरिए भीख माँगने का कारोबार बहुत ही चतुराई के साथ चलाया जा रहा है। आमतौर पर विकलांग, दुधमुँहे बच्चे और कुष्ठरोगी भीख माँगने के लिए धार्मिक और सार्वजनिक जगहों पर लगाए जाते हैं। जिस रास्ते पर ज्यादा वाहन चलते हैं और जिस धार्मिक स्थान पर ज्यादा भीड़ लगती है, वहाँ भीख माँगने वालों की तादाद ज्यादा होती है। यह स्वाभाविक नहीं, बल्कि बहुत ही सूझबूझ से भिखारियों को वहाँ बिठाया जाता है। ऐसा हुलिया इन तथाकथित भिखारियों का होता है कि न चाहते हुए भी लोग इनके हाथ पर पैसे डाल ही जाते हैं। गौरतलब है सहानुभूति बटोरने का यह तरीका सामान्य भिखारियों को मालूम नहीं होता।
महज दिल्ली में एक लाख भिखारी यदि रोजाना पचास रुपए भीख के जरिए पैदा करता है तो ये भिखारी पचास लाख रुपए वसूलकर अपने आकाओं को दे देते हैं। लेकिन इन किस्मत के मारे भिखारियों को इसके बदले में महज आधा पेट भोजन और मैले-कुचैले कपड़े ही मिल पाते हैं। भीख उद्योग सरकारी कानून में शामिल न होने की वजह से इतनी बड़ी रकम पर सरकार कोई कर भी वसूल नहीं पाती है। इसलिए इस उद्योग को चलाने वाले माफिया-उद्योग को सौ फीसद फायदा ही फायदा होता है। पिछले साल राष्ट्रमंडल खेलों के चलते दिल्ली से भिखारियों को पकड़कर उनके जन्म स्थान पहुँचाने का अभियान, दिल्ली सरकार ने चलाया था। लेकिन एक साल भी नहीं बीता कि हजारों की तादाद में भिखारी फिर दिल्ली की सड़कों और कॉलोनियों में भीख माँगते दिखाई पड़ने लगे हैं। दिल्ली सरकार कभी इन्हें दिल्ली से बाहर करने की बात करती है तो कभी इनके पुनर्वास की बात करती रही है। लेकिन यह महज भाषणों तक ही सीमित रह गया है। देश में हर स्तर पर बिना मेहनत खाने-कमाने की वृत्ति तेजी से बढ़ रही है। यह तब तक बंद नहीं हो सकता जब तक समाज भिखारियों को भीख देना बंद न कर दे। इसके लिए जन-जाग्रति की जरूरत है। इससे ही भीख उद्योग पर लगाम लगाई जा सकती है।
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