क्या मुआवजे से बलात्कार की घटनाओं पर रोक लग सकेगी? दरअसल, सरकार का ताजा फैसला यह बताता है कि समस्या विशेष के प्रति उसका दृष्टिकोण कितना संकुचित और असंतोषजनक है।
केंद्र सरकार आगामी अगस्त महीने से एक योजना शुरू करने जा रही है, जिसके तहत बलात्कार की शिकार महिलाओं-युवतियों को आर्थिक मदद देकर उनका दुख-दर्द बाँटने की कोशिश की जाएगी। यह घोषणा केंद्रीय बाल एवं महिला विकास मंत्री कृष्णा तीरथ ने माउंटआबू में हुई मंत्रालय की संसदीय समिति की बैठक के बाद की। बलात्कार पीड़ितों हेतु वित्तीय सहायता एवं समर्थन सेवाएँ-पुनरुद्धारक न्याय स्कीम नामक इस योजना के मुताबिक पीड़िता को प्राथमिकी दर्ज कराने और मेडिकल रिपोर्ट आने के बाद द्ख्र बीस हजार की त्वरित सहायता दी जाएगी। अगले चरण में पीड़िता को जरूरत के अनुसार आश्रय, परामर्श, चिकित्सकीय एवं कानूनी सहायता, शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण आदि के लिए द्ख्र पचास हजार दिए जाएँगे। पीड़िता में आत्मविश्वास पैदा करने और उसकी दीर्घकालीन जरूरतों की पूर्ति हेतु अंतिम सहायता के तौर पर उसे द्ख्र एक लाख तीस हजार मिलेंगे। यही नहीं, पीड़िता की मृत्यु हो जाने पर उसके अवयस्क बच्चों अथवा कानूनी उत्तराधिकारी को भी द्ख्र एक लाख की सहायता देने का प्रावधान है।
योजना का विशेष पक्ष यह है ऐसे दावों के निपटारे के लिए गठित जिला बोर्डों की सलाह पर राज्य बोर्ड अवयस्क बालिका, मानसिक रूप से विक्षिप्त अक्षम महिलाओं, बलात्कार की वजह से यौन रोगों या एचआईवी से संक्रमित होने वाली महिलाओं-युवतियों को द्ख्र तीन लाख की आर्थिक सहायता दे सकेगा। पीड़िता को अंतरिम राहत और सहायता सेवा पंद्रह दिनों के भीतर प्रदान कर दी जाएगी। मामला दर्ज होने के एक साल के भीतर उसे समस्त आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने की बात कही गई है। अब सवाल यह है कि क्या सरकार पीड़ितों के सामने आर्थिक मदद का चारा फेंककर कानून व्यवस्था सुधारने के अपने कर्तव्य से मुँह मोड़ना चाहती है? क्या वह महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी से बचना चाहती है? क्या मुआवजे से बलात्कार की घटनाओं पर रोक लग सकेगी? दरअसल, सरकार का ताजा फैसला यह बताता है कि समस्या विशेष के प्रति उसका दृष्टिकोण कितना सकुंचित और असंतोषजनक है। देशभर में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के चलते महिलाओं में असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है, यह किसी से भी छिपा नहीं है। अखबार, टीवी चैनल दुष्कर्म की खबरों से लगभग रोज ही पटे रहते हैं। राजधानी दिल्ली में ही रोजाना कहीं न कहीं बलात्कार होने की खबर पढ़ने-सुनने को मिल जाती है। महिलाए कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। कभी उनके गहने-पैसे लुटते हैं तो कभी आबरू, जबकि सरकार समस्या की गंभीरता समझने और उसका कारगर समाधान खोजने के बजाय मुआवजा और आर्थिक सहायता जैसा रास्ता अख्तियार कर अपना पल्ला झाड़ लेना चाहती है।
केंद्र सरकार आगामी अगस्त महीने से एक योजना शुरू करने जा रही है, जिसके तहत बलात्कार की शिकार महिलाओं-युवतियों को आर्थिक मदद देकर उनका दुख-दर्द बाँटने की कोशिश की जाएगी। यह घोषणा केंद्रीय बाल एवं महिला विकास मंत्री कृष्णा तीरथ ने माउंटआबू में हुई मंत्रालय की संसदीय समिति की बैठक के बाद की। बलात्कार पीड़ितों हेतु वित्तीय सहायता एवं समर्थन सेवाएँ-पुनरुद्धारक न्याय स्कीम नामक इस योजना के मुताबिक पीड़िता को प्राथमिकी दर्ज कराने और मेडिकल रिपोर्ट आने के बाद द्ख्र बीस हजार की त्वरित सहायता दी जाएगी। अगले चरण में पीड़िता को जरूरत के अनुसार आश्रय, परामर्श, चिकित्सकीय एवं कानूनी सहायता, शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण आदि के लिए द्ख्र पचास हजार दिए जाएँगे। पीड़िता में आत्मविश्वास पैदा करने और उसकी दीर्घकालीन जरूरतों की पूर्ति हेतु अंतिम सहायता के तौर पर उसे द्ख्र एक लाख तीस हजार मिलेंगे। यही नहीं, पीड़िता की मृत्यु हो जाने पर उसके अवयस्क बच्चों अथवा कानूनी उत्तराधिकारी को भी द्ख्र एक लाख की सहायता देने का प्रावधान है।
योजना का विशेष पक्ष यह है ऐसे दावों के निपटारे के लिए गठित जिला बोर्डों की सलाह पर राज्य बोर्ड अवयस्क बालिका, मानसिक रूप से विक्षिप्त अक्षम महिलाओं, बलात्कार की वजह से यौन रोगों या एचआईवी से संक्रमित होने वाली महिलाओं-युवतियों को द्ख्र तीन लाख की आर्थिक सहायता दे सकेगा। पीड़िता को अंतरिम राहत और सहायता सेवा पंद्रह दिनों के भीतर प्रदान कर दी जाएगी। मामला दर्ज होने के एक साल के भीतर उसे समस्त आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने की बात कही गई है। अब सवाल यह है कि क्या सरकार पीड़ितों के सामने आर्थिक मदद का चारा फेंककर कानून व्यवस्था सुधारने के अपने कर्तव्य से मुँह मोड़ना चाहती है? क्या वह महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी से बचना चाहती है? क्या मुआवजे से बलात्कार की घटनाओं पर रोक लग सकेगी? दरअसल, सरकार का ताजा फैसला यह बताता है कि समस्या विशेष के प्रति उसका दृष्टिकोण कितना सकुंचित और असंतोषजनक है। देशभर में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं के चलते महिलाओं में असुरक्षा की भावना बढ़ती जा रही है, यह किसी से भी छिपा नहीं है। अखबार, टीवी चैनल दुष्कर्म की खबरों से लगभग रोज ही पटे रहते हैं। राजधानी दिल्ली में ही रोजाना कहीं न कहीं बलात्कार होने की खबर पढ़ने-सुनने को मिल जाती है। महिलाए कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। कभी उनके गहने-पैसे लुटते हैं तो कभी आबरू, जबकि सरकार समस्या की गंभीरता समझने और उसका कारगर समाधान खोजने के बजाय मुआवजा और आर्थिक सहायता जैसा रास्ता अख्तियार कर अपना पल्ला झाड़ लेना चाहती है।
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