¬सुरक्षा पर समझौता

वित्त मंत्री ने बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए 1,64,415 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। सशस्त्र सेनाओं के आधुनिकीकरण के लिए रक्षा उपकरण, हथियार व साजो-सामान की खरीदारी को देखते हुए यह रक्षा बजट पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। पिछले बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए पूंजी और राजस्व मद में कुल 1,47,344 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, लेकिन यह नाकाफी सिद्ध हुआ और दिसंबर 2010 में रक्षा मंत्रालय को अतिरिक्त राशि की मांग करनी पड़ी। अगले वर्ष के लिए घोषित रक्षा बजट देश के कुल बजट का सातवां हिस्सा है। पिछले रक्षा बजट के मुकाबले इस बार 11.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है। घोषित रक्षा बजट में पूंजीगत खर्च 69,199 करोड़ रुपये और रक्षा मंत्रालय व सशस्त्र बलों के रोजमर्रा के खर्च तथा वेतन आदि के लिए 95,216 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं। योजनागत परिव्यय में थल सेना के लिए 64,251 करोड़ रुपये, वायु सेना के लिए 15,927 करोड़ रुपये, नौसेना के लिए 10,589 करोड़ रुपये तथा रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन के लिए 5,624 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। इसी तरह पूंजीगत परिव्यय 69,199 करोड़ रुपयों में से वायु सेना की खरीदारी के लिए 30,699 करोड़ रुपये, थल सेना की खरीदारी के लिए 18,988 करोड़ रुपये, नौसेना की खरीदारी के लिए 13,728 करोड़ रुपयों के प्रावधान का प्रस्ताव है। शेष धनराशि अन्य योजनाओं के लिए है। वायु सेना का पूंजीगत परिव्यय अन्य सेनाओं की तुलना में ज्यादा है लेकिन इससे भी उसके सौदे पूरे होते दिखाई नहीं पड़ते। पिछले वर्ष वायु सेना को खरीद मद में 23,446 करोड़ रुपये मिले थे। अब इसे 7253 करोड़ रुपये बढ़ाकर 30,699 करोड़ रुपये किया गया है। यह बढ़ोतरी पर्याप्त नहीं कही जा सकती है क्योंकि इस वर्ष वायु सेना के लिए बहुप्रतीक्षित 126 बहुउद्देश्यीय भूमिका वाले लड़ाकू विमानों की खरीद के सौदे को अंतिम रूप दिया जाना है। इसके अलावा वायु सेना के विमान बेड़े को बढ़ाया जाना है क्योंकि पाक सीमा, चीन सीमा व समुद्री सीमा की सुरक्षा के लिए कुछ नई स्क्वाड्रनों की आवश्यकता है। इसके लिए सुखोई-30 एमकेआई विमानों की खरीद की जानी है। ऐसे में यह धनराशि काफी कम होगा। थल सेना की खरीदारी की तरफ ध्यान दिया जाए तो उसे पिछले वर्ष के 11,099 करोड़ की तुलना में इस वर्ष 18,988 करोड़ रुपये मिले हैं। थल सेना की होवित्जर तोपों की खरीद का सौदा अमेरिका से पूरा किया जाएगा। उसे 155 मिमी की लगभग 400 तोपों की जरूरत है। इसके साथ ही उसका हेलीकॉप्टर बेड़ा मजबूत किया जाना है जिसके लिए 197 हेलीकॉप्टरों की खरीद की जानी है। इन दोनों सौदों में बड़ी रकम खर्च होगी। इसके अलावा बड़ी संख्या में टैंकों, नई एसाल्ट राइफलों, दो लाख कारबाइनों, 1500 मशीन गनों, स्नो स्कूटर, सुरंग रोधी वाहनों, बुलेटप्रूफ जैकेटों, राकेट लांचरों तथा नाइट विजन चश्मों की खरीदारी की जानी है, जो इस बजट से शायद ही पूरी हो सके। वायु सेना व थल सेना की तरह नौसेना का पूंजीगत परिव्यय पिछले वर्ष की तुलना में अधिक है। नौसेना को 13,728 करोड़ रुपये मिले हैं। नौसेना की ताकत बढ़ाने के लिए 8,500 करोड़ रुपये के आठ पी-8 आई टोही विमान खरीदे जा रहे हैं। इस वर्ष पांच अरब डॉलर का साजो-सामान भी खरीदा जाना है। नौसेना को पनडुब्बी निरोधक बमों की जरूरत है। इसलिए यह बजट कम ही कहा जाएगा। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन को भी अधिक धन नहीं दिया गया है। आने वाले दिनों में भारत को अपनी रक्षा तैयारी बढ़ाने के लिए रक्षात्मक मिसाइलों के लिए विशेष प्रावधान करने की जरूरत है। बेशक रक्षा बजट बढ़ाया गया है, लेकिन चीन व पाक से मिलने वाली चुनौतियों को देखते हुए इसे और अधिक बढ़ाने की जरूरत है। तभी सशस्त्र बलों का बेहतर आधुनिकीकरण संभव होगा।

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