यह सच है कि आज हमारे पास समय नहीं है, लेकिन भविष्य में समय की और भी कमी होने वाली है। हमारे पास इतना भी समय नहीं होगा कि हम अपने परिजनों की अंत्येष्टि में शामिल हो पाएंगे, क्योंकि अब महीनों सप्ताहों में नहीं, बल्कि हर रोज हमारे किसी न किसी परिजन की मौत होने वाली है। जिस तेजी से तंबाकू से जुड़ी चीजों का सेवन बढ़ रहा है, उससे आगामी नौ वर्षो में 13 लाख लोगों की मौत केवल इस व्यसन से होने वाली है। सोचिए, आप अपने कितने परिजनों की अंत्येष्टि में शामिल हो पाएंगे? यह बहुत ही कड़वा सच है। इसे हम समझ रहे हैं, लेकिन हमारी गठबंधन वाली विवश सरकार समझ ही नहीं पा रही है। सुप्रीमकोर्ट ने आदेश दिया है कि पहली जून से तंबाकू और सिगरेट के पैकेट पर डरावने चित्रों के साथ यह भी बताया जाए कि इससे कैंसर होता है। कोर्ट ने इसे अनिवार्य रूप से लागू करने का फैसला दिया है। पर सरकार पर तंबाकू लॉबी इतनी अधिक हावी है कि वह चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही है। वैसे भी सुप्रीमकोर्ट के न जाने कितने नियम-कायदों की सरेआम धज्जियां उड़ रहीं हैं, ऐसे में एक और नियम आ गया तो क्या फर्क पड़ता है? सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर पहली जून से सिगरेट के पैकेट पर 40 प्रतिशत स्थान डरावने चित्रों के लिए सुरक्षित रखने और तंबाकू यानी कैंसर जैसी चेतावनी लिखना अनिवार्य होगा। पर हमारे देश की राजनीति पर तंबाकू लॉबी इतनी अधिक हावी है कि सरकार चाहकर भी इस लॉबी के खिलाफ किसी प्रकार की कार्रवाई करने से बच रही है। वैसे भी प्रधानमंत्री ने यह तो स्वीकार कर ही लिया है कि गठबंधन सरकार की अपनी मजबूरियां होती हैं। इसलिए कोई घोटाले कर सकता है तो कोई सुप्रीमकोर्ट के आदेशों की खुलेआम अवहेलना भी कर सकता है। सरकार तब भी विवश थी, आज भी विवश है। सीने में तेज दर्द, सांस रुकने लगे और ऐसा दबाव का अनुभव होने लगे, इस पीड़ा को महसूम करना हो तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के किसी भी अधिकारी से मिल लीजिए, वह बताएगा कि हमारा विभाग किस तरह से तंबाकू लॉबी के दबाव का शिकार है। ये अधिकारी बताते हैं कि तंबाकू से हर साल देश में 9 लाख लोग एडि़यां रगड़-रगड़कर मरते हैं। फिर भी तंबाकू लॉबी अपने निहित स्वार्थ के कारण केवल अपना मुनाफा ही देख रही है। कितने बरस हो गए सिगरेट के पैकेट पर डरावने चित्र और इससे होने वाली हानियों को बताने के आदेश को, लेकिन सरकार चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही है। आश्चर्य की बात यह है कि हमारे देश के कृषि मंत्री शरद पवार तंबाकू की लत के कारण होठों का ऑपरेशन करा चुके हैं, इसके बाद भी उनके जैसे कई मंत्री हैं, जिन्हें तंबाकू की लत है और वे इस व्यसन को छोड़ने को तैयार ही नहीं हैं। फिर भी तंबाकू का इस्तेमाल करने वाले हमेशा यही सोचते हैं कि तंबाकू दूसरों को भले ही नुकसान पहुंचाए, लेकिन हमें कभी नुकसान नहीं पहुंचाएगा। उनकी यही सोच उनके परिवार वालों पर किस तरह से भारी पड़ती है, इसे शायद वे समझने को तैयार नहीं हैं। तंबाकू लॉबी सरकार पर लगातार हॉवी होती जा रही है। तंबाकू और सिगरेट के पैकेट पर डरावने चित्र होने चाहिए, इसके लिए सरकार भी राजी है, लेकिन जब भी वह इस दिशा में कदम उठाती है, तंबाकू लॉबी ऐसा करने से रोक देती है। विवश सरकार एक बार फिर मजबूर हो जाती है। इस दिशा में सरकार की सक्रियता को देखते हुए पिछले साल तंबाकू उत्पादकों ने अपने कारखाने बंद कर दिए। उनका मानना था कि सरकार को तंबाकू के व्यसनी ही विवश करेंगे, हमारे कारखाने खोलने के लिए। आखिर सरकार ही झुकी। करीब 11 साल हो गए, तंबाकू के उत्पादों पर डरावने चित्र प्रकाशित करने का आदेश हुए, पर अब पहली जून से यह आदेश अनिवार्य रूप से लागू करने की योजना है। दूसरी ओर गठबंधन सरकार की विवशताओं के चलते सुप्रीमकोर्ट का यह निर्णय कितना अमल में लाया जाएगा, इस पर संदेह के बादल उमड-घुमड़ रहे हैं। सुप्रीमकोर्ट का यह आदेश तंबाखू कंपनियां मानने वाली नहीं हैं। ये अच्छी तरह से जानती हैं कि हमारे राजनैतिक आका ही ऐसा होने नहीं देंगे। दूसरी ओर सुप्रीमकोर्ट ने सरकार को स्पष्ट रूप से कह दिया है कि सरकार अब इस दिशा में सक्रिय हो जाए और पहली जून से सिगरेट-तंबाकू के पैकेट पर डरावने चित्रों के साथ यह भी लिखा जाए कि तंबाकू से कैंसर होता है। सरकार तो यह कहने से भी नही अघाती कि हम तो इसके लिए पूरी तरह से तैयार हैं, लेकिन हम पर तंबाकू लॉबी का दबाव है। सुप्रीमकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग से पूछा है कि हमें यह बताया जाए कि हमारे आदेश का पालन करने की दिशा में आपने क्या कदम उठाए हैं? इसकी सारी जानकारी कोर्ट में दें। तंबाकू उद्योग के रसूखदार हमारे कामों में पहाड़ जैसे अवरोध उत्पन्न करते हैं, यह बताते हुए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी अपना नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि वॉलंटियरी हेल्थ ऐसोसिएशन ऑफ इंडिया नामक एनजीओ चलाने वाले बिनोय मैथ्यू ने आरटीआइ के तहत इस आशय की जानकारी मांगी। तब केंद्र सरकार ने स्वीकार किया कि तंबाकू लॉबी हम पर दबाव डालती है। यह सच है। टोबेको इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया, जाफरानी, जर्दा, पान मसाला एसोसिएशन आफ इंडिया और बीड़ी मर्चेट एसोसिएशन इस मामले पर सरकार पर लगातार दबाव बनाए हुए हैं। पिछले वर्ष 9 नवंबर को स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने संसद में कहा था कि हम तंबाकू और सिगरेट के पैकेट पर गंभीर चेतावनी प्रकाशित करने के लिए तैयार हैं, लेकिन ऐसे विज्ञापन पहले भी प्रकाशित हुए हैं, पर इसका असर नहीं होता। मैथ्यू तो साफ-साफ कहते हैं कि नागरिकों के स्वास्थ्य के प्रति स्वास्थ्य विभाग ही गंभीर नहीं है, तो फिर आम आदमी कैसे गंभीर हो सकता है? स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने में यह विभाग पूरी तरह से नाकाम साबित हुआ है। विश्व के कई देशों में सिगरेट और तंबाकू के पैकेट्स पर इस तरह की गंभीर चेतावनी प्रकाशित करते हुए डरावने चित्र प्रकाशित किए हैं, इसका असर भी हुआ है। इसकी बिक्री भी प्रभावित हुई है। हमारा कट्टर दुश्मन पाकिस्तान भी इस दिशा में सचेत है। वह भले ही तंबाकू का उत्पादन हमसे अधिक करता हो, लेकिन वहां भी सिगरेट-तंबाकू के पैकेट्स पर डरावने चित्र और गंभीरत चेतावनियां प्रकाशित की जाती हैं। इससे वहां के लोगों ने तंबाकू का उपयोग कम कर दिया है। यदि आंकड़ों पर ध्यान दिया जाए तो यह तय है कि आगामी 9 वर्षो के अंदर ही तंबाकू के सेवन से हमारे देश के 13 प्रतिशत लोग अकाल मौत के शिकार होंगे। 38.4 मिलियन लोग बीड़ी से, 13.2 लोग सिगरेट से होने वाले रोगों से मौत का शिकार होंगे। सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करने पर प्रतिबंध तो लगा दिया है, लेकिन वह कितना अमल में लाया जा रहा है, इससे हम सभी वाकिफ हैं। आज भी पाठशालाओं, कॉलेजों के आसपास इस तरह की प्रतिबंधित चीजों की खुलेआम बिक्री हो रही है। सरकार कुछ कर ही नहीं पा रही है।
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