ऑनर किलिंग को शह देता यह निरंकुश समाज


सबसे चिंता की बात यह है कि ऑनर किलिंग की निंदा के बजाय हत्यारों के साहस की प्रशंसा और बचाव करने वालों की तादाद पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है जो एक सेहतमंद समाज के लिए खतरनाक है।



आनॅर किलिंग की ताजा घटना उत्तरप्रदेश के उस इलाके में घटी है जहाँ इस तरह की वारदातें लगभग न के बराबर होती हैं। शायद ही कभी-कभार पूर्वी उत्तरप्रदेश से इस तरह की वीभत्स घटना कभी सुनाई पड़ी हो। इस ताजा घटना से लगता है कि ऑनर किलिंग का दायरा लगातार उन इलाकों में बढ़ता जा रहा है जहाँ ऐसी घटनाओं की लोग पहले कल्पना नहीं करते थे। जिस अंतरजातीय प्रेम संबंध को लेकर कानपुर और कौशांबी में दो लड़कियों की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी गई वह दिल दहला देने वाली है। झूठी शान और बिरादरी में तथाकथित अपमान के लिए उनकी हत्या से तो यही लगता है कि जुनूनी मानसिकता अब हरियाणा, पश्चिमी यूपी और राजस्थान से निकलकर देश के दूसरे इलाकों में भी तेजी से आगे बढ़ती जा रही है, जो एक सेहतमंद समाज के लिए बहुत ही खतरनाक है। सबसे चिंता की बात यह है कि ऐसे शैतानी क्रूर कार्यों की निंदा के बजाय हत्यारों के साहस की प्रशंसा और बचाव करने वालों की तादाद पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है। मीडिया के जरिए समाज की यह सबसे भयंकर बुराई आग की लपटों की तरह लगातार अछूते इलाकों को भी अपने चपेट में लेती जा रही है। गौरतलब है कि पिछले साल हरियाणा और पश्चिमी यूपी और राजस्थान की खाप पंचायतों ने सरकार पर तथाकथित सगोत्री विवाह के खिलाफ कानून बनाने और हिन्दू विवाह अधिनियम १९५५ में बदलाव हेतु दबाव बनाने के लिए कई महीने तक शोर मचाया था। जानकारी के मुताबिक अधिनियम में तो अभी तक बदलाव नहीं किया जा सका है लेकिन केंद्र ने उनकी माँगों पर विचार करने का फौरी आश्वासन जरूर दे दिया था। हरियाणा की कांगे्रस सरकार और विपक्ष दोनों ने खाप पंचायतों के आगे घुटने टेक दिए थे।

तब से लेकर अब तक ऑनर किलिंग की कई घटनाएँ घट चुकी हैं लेकिन केंद्र और राज्य सरकारें अपराधियों के खिलाफ या पंचायतों के खिलाफ कोई कारगर कदम नहीं उठा सकी हैं। वोट बैंक खिसकने के डर से सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों बढ़ते ऑनर किलिंग के मामलों पर चुप्पी साधे हुए हैं। इसी चुप्पी का परिणाम है कि हर साल सैकड़ों की तादाद में प्रेमी-युगलों की क्रूरता के साथ सार्वजनिक या परिवार के जरिए हत्या कर दी जाती है ।

दरअसल, ऑनर किलिंग की घटनाओं के समाचार जब से मीडिया के जरिए प्रसारित होने लगे तब से यह बुराई तेजी के साथ बढ़ी है। झूठी शान के लिए मर मिटने वाले इसे छिपा देते हैं। गाँव और कस्बों में जो घटनाएँ घटती हैं उनमें से महज ५ प्रतिशत ही अखबारों तक पहुँच पाती हैं। इससे जहाँ ऑनर किलिंग के अपराधी बच निकलते हैं वहीं ऐसे मामलों के पैरोकारों की तादाद और भी बढ़ जाती है, क्योंकि बुराई दबाने से दब तो जाती है लेकिन वह सौ गुनी बुरी बनकर समाज में बदबू पैदा करती है।

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