बीच बहस में फिर आया अश्लीलता का मुद्दा

बीच बहस में फिर आया अश्लीलता का मुद्दा
इस बात पर गौर करना जरूरी है कि अश्लीलता और श्लीलता के मानक महज महिलाओं के संदर्भ में तय किए जाएँ या पुरुषों को भी इसमें शामिल किया जाए। इस पर गौर नहीं करने से बात अधूरी ही रहेगी।




अश्लील एसएमएस को लेकर अश्लीलता एक बार फिर बहस का मुद्दा बनती दिखाई पड़ रही है। केंद्र्र सरकार से इसके खिलाफ सख्त कानून बनाने की माँग पहले की तरह फिर उठने लगी है। केंद्र सरकार भी इसे अपराध घोषित करने के मूड में दिखाई पड़ रही है। पन्द्रह साल पहले एफएम हुसैन की तथाकथित अश्लील पेंटिंग को लेकर सारे देश में बहस छिड़ी थी। तब ऐसा लगा था कि इस पर कोई सार्थक कानून बनेगा और अश्लीलता फैलाने वालों को कठघरे में फँसाया जा सकेगा लेकिन अश्लीलता के लिए कोई मानक तय न होने से यह तय नहीं हो पाया कि किस तस्वीर, पुस्तक, ड्राइंग, स्लाइड, वाक्य, लेख और गाने को अश्लील माना जाए और किसे नहीं। जब तक यह तय नहीं होगा तब तक अश्लीलता और श्लीलता को लेकर बहस चलती रहेगी।

इस बात पर गौर करना जरूरी है कि अश्लीलता और श्लीलता का मानक महज महिलाओं के संदर्भ में तय किए जाएँ या पुरुषों को भी इसमें शामिल किया जाए। अभी तक मोटे तौर पर महिलाओं की अश्लील तस्वीरें, पेंटिंग, विज्ञापन और एसएमएस ही अश्लीलता के दायरे में माने जाते हैं। १९८६ में केंद्र सरकार ने स्त्री अशिष्ट रूपण प्रतिनिषेध कानून बनाया था। तब जिन चीजों को अश्लीलता के दायरे में माना गया था, अब मीडिया के फैलाव के बाद वे उससे बाहर माने जाते हैं। १९९३ में केंद्र सरकार ने वैश्वीकरण, उदारीकरण और निजीकरण को देश की तरक्की के लिए जरूरी मानते हुए लागू किया। तब से लेकर अब तक कई चीजों में बहुत बदलाव आ चुका है। इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के दायरे का बहुत विस्तार हो चुका है। कम्प्यूटर, इंटरनेट के जरिए बहुत-सी चीजें सामने आ चुकी हैं। अश्लीलता के दायरे पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गए हैं। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा कानून में संशोधन करना बहुत जरूरी है। इसमें सभी तरह की अश्लीलता को समेटा जाना चाहिए। इसके बावजूद एक सवाल फिर भी अनुत्तरित ही रह जाएगा कि कोर्ट द्वारा समलैंगिकता की मंजूरी को किस दायरे में माना जाएगा? यदि यह श्लील है तो इस पर आपत्ति क्यों और यदि अश्लील है तो यह मौलिक अधिकार के दायरे में कैसे? १९८६ में कानून लागू होने के बाद भी अश्लीलता को लेकर कोई सोच और समझ नहीं बन सकी है। जहाँ तक कानून की बात है इंडियन पिनल कोड की धारा २९२ व स्त्री अशिष्ट रूपण प्रतिनिषेध कानून १९८६ की धारा ३(७) में साफतौर पर अश्लीलता को परिभाषित न किए जाने से अश्लीलता को लेकर कोई एक मानक प्रतिबंध के रूप में आज तक तय नहीं हो पाया है ।

श्लीलता पर एक सार्थक बहस होनी चाहिए और इस पर एक सार्थक राय भी बननी चाहिए और यह भी तय किया जाना चाहिए कि अश्लीलता की आड़ में कला और मौलिक अभिव्यक्ति को नजरअंदाज न किया जाए।

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