कट्टरवाद की भेंट चढ़ता पाक का अमन

 पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून का विरोध करने के नाम पर जिस तरह पहले पंजाब के गवर्नर तसीर और अब अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शहबाज भट्टी की निर्मम हत्या की गई है वह धार्मिक कट्टरवाद के सिर उठाने व हावी होने का प्रमाण है। आतंकवादियों का खौफ इतना ज्यादा है कि गिलानी सरकार भी चुप है। पाकिस्तान के हालात इतने खतरनाक दौर में पहुंच गए हैं कि वहां कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता? जिस आदर्श पाकिस्तान का ख्वाब कभी कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना न देखा था वह कट्टरवाद की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है

पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून के नाम पर हत्याओं का दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है।। राजधानी इस्लामाबाद में सरेआम जिस तरह देश के केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री शहबाज भट्टी की दिनदहाड़े निर्मम हत्या की गई उसके बाद यह कहने में कोई दो मत नहीं कि पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरता के नाम पर सेकुलर मिजाज के नेताओं के जिंदा रहने के अधिकार पर गंभीर खतरा पैदा हो गया है। इस नए वर्ष की शुरुआत में चार जनवरी को पंजाब के गवर्नर सलमान तसीर की जघन्य हत्या के बाद यह दूसरी बड़ी राजनीतिक हत्या मानी जा रही है। पंजाब के उदारवादी गवर्नर तसीर की हत्या के बाद भट्टी की हत्या ने यह साबित कर दिया है कि पाकिस्तान में धर्मनिरपेक्ष नीति में विश्वास रखने वाले लोगों और इस मान्यता की जगह लगभग समाप्त हो गई है। गौरतलब है कि भट्टी ईसाई समुदाय से ताल्लुक रखते थे और सरकार में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री बनाए गए थे। पाकिस्तान में जमीनी स्तर से राजनीति की शुरुआत करने वाले शहबाज भट्टी की छवि देश में एक निर्भीक उदारवादी नेता की थी। सलमान तसीर की तरह वह भी पाकिस्तान के विवादित ईशनिंदा कानून के खिलाफ थे। हाल ही में उन्होंने आसिया बीबी मामले में बयान दिया था कि उसे माफ कर दिया जाना चाहिए और जहां तक हो सके इस विवादास्पद कानून में बदलाव किया जाना चाहिए। उनकी यह बात पाकिस्तान में सक्रिय आतंकवादियों खासकर तालिबान और अलकायदा समर्थक कट्टरपंथियों को रास नहींआई। लिहाजा उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई। बावजूद इसके शहबाज भट्टी ने अपने इरादे नहींबदले और वह अपनी बात पर अटल रहे। कुछ महीने पूर्व पाकिस्तान के एक निजी टेलीविजन में दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि- सच कहने का जज्बा खुदा की एक बड़ी नेमत है, अगर यह हौसला मेरे जेहन में पैदा हुई है तो मैं ईश्वर का शुक्रगुजार हूं कि उनकी राह में शायद मैं कुछ कर पाऊं। इस तरह का मर्मस्पर्शी बयान किसी मुल्क में सत्ताधारी पार्टी के नेता द्वारा दिए जाने का मतलब साफ है कि वहां हालात वाकई बेहद संगीन हो चुके हैं। शहबाज भट्टी को जब गाोली मारी गई उस वक्त हमलावरों ने घटनास्थल के पास कुछ पोस्टर भी फेंके, जिसमें कहा गया है कि जो भी अल्लाह की शान में गुस्ताखी करेगा उसका अंजाम यही होगा। एक लिहाज से देखा जाए तो यह पाकिस्तान की केंद्रीय सत्ता को आतंकियों की खुली चुनौती है। मौजूदा पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी सरकार इन घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाने की बजाय आतंकियों के सामने घुटने टेकती नजर आ रही है। दहशतगर्द चुन-चुनकर सुधारवादी नेताओं का कत्ल कर रहे हैं, जबकि इसके बरक्स सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। फिर चाहे मसला गवर्नर तसीर का हत्या का हो या भट्टी के कत्ल का। सरकार ने अभी तक इस मामले में कोई ठोस बयान तक नहीं दिया है, जिससे यह समझा जाए कि आतंकवादियों पर शिकंजा कसने के लिए वह वाकई गंभीर है। दरअसल गिलानी सरकार की यह चुप्पी उनके अंदर मौजूद खौफ की कहानी खुद-ब-खुद बयां करती है। वहीं राष्ट्रपति जरदारी की बात करें तो उनका किरदार पूरी तरह हैदराबाद के निजाम की तरह है, जो आने वाली मुसीबतों से बेपरवाह अपने ऐश्वर्य और विलास में मग्न रहने वाले राजनेताओं की तरह है। वैसे भी पाकिस्तान की जनता की नजर में उनकी छवि एक दमदार नेता की तरह कभी नहींरही। देश में फैली अराजकता और अव्यवस्था से उन्हें कोई वास्ता नहीं है। अगर देखा जाए तो पाकिस्तान संभवत: अपने इतिहास के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा है। एक तरफ आतंकवाद की समस्या विकराल रूप लेती जा रही है तो दूसरी तरफ समाज में पैर पसारता धार्मिक कट्टरपन है, जो धीरे-धीरे पाकिस्तान को गर्त की खाई की ओर धकेल रहा है। लाहौर और कराची शहर की अपनी अलग पहचान है। ये शहर पाकिस्तान में अपनी आजादख्याली के लिए दुनियाभर में मशहूर रहे हैं। संयोग से मशहूर शायर फैज अहमद फैज की जन्मशती भी मनाई जा रही है। पूरे उपमहाद्वीप में फैज का नाम बड़े ही इज्जत के साथ लिया जाता है। उन्होंने अपने नज्म में मौजूदा सैन्य तानाशाही की जमकर आलोचना की थी, लेकिन अफसोस की बात कि अक्सर देश और दुनिया की चर्चाओं से गुलजार रहने वाला पंजाब यूनिवर्सिटी और नेशनल कॉलेज के कैंपस इन दिनों गहरी वीरानी छाई हुई है। दरअसल, इंसानी जान का दुश्मन बन चुके ईशनिंदा कानून का विरोध पाकिस्तान में प्रगातिशील सोच रखने वाले छात्र, बुद्धिजीवी और सामाजिक कार्यकर्ता करते रहे हैं, लेकिन उनकी यह कोशिश जोर पकड़े उससे पहले ही उनके आंदोलन को दबा दिया जाता है या गंभीर परिणाम भुगतने की धमकियों के कारण ऐसे लोगों की आवाज को दबाने का प्रयास किया जा रहा है। यही कारण है कि चाहते हुए भी देश के तमाम बुद्धिजीवी अपने विचारों को अमलीजामा पहना पाने का पर्याप्त साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। पाकिस्तान में पिछले दिनों कैबिनेट में हुए एक बडे़ फेरबदल के तहत मंत्रियों की संख्या में कमी की गई थी, लेकिन बावजूद इसके शहबाज भट्टी को अल्पसंख्यक मामलों का मंत्री बनाया गया। पंजाब के गवर्नर सलमान तसीर की हत्या के बाद अब पाकिस्तान में यह बात जोर पकड़ रही है कि क्या इस देश में धर्मनिरपेक्षता खत्म हो रही है और अभिव्यक्ति की आजादी अपराध बन गया है। इस संदर्भ में यदि हम तसीर की ही बात करें तो वह एक उदार और धर्मनिरपेक्ष मुस्लिम नेता थे। इसी साल जनवरी महीने में उन्हें उनके ही अंगरक्षक ने इसलिए गोली मार दी, क्योंकि वह देश के बेहद कड़े ईशनिंदा कानून के खिलाफ बात करते थे और इसमें बदलाव की आवश्यकता पर जोर दे रहे थे। वास्तव में तसीर की हत्या ने देश और विदेशों में रहने वाले उदार पाकिस्तानियों को बड़ा सदमा पहुंचाया है, लेकिन उससे ज्यादा परेशानी की बात तसीर के हत्यारे मलिक मुमताज हुसैन कादरी को मिला जबर्दस्त समर्थन है। मुल्क में फिरकापरस्ती को बढ़ावा देने वालों ने कादरी को गााजी का खिताब तक दे डाला। तसीर और भट्टी जैसे उदारवादी नेताओं को अगर यूं ही कत्ल किया जाता रहा तो इस बात की पूरी संभावना है कि धीरे-धीरे पाकिस्तान का मुस्तकविल दहशतगर्द और कट्टरपंथियों के हवाले होगा और यही देश की दिशा तय करेंगे। यदि ऐसा हुआ तो निश्चय ही यहां आजाद ख्याल और समाज में बराबरी की सोच रखने वाले लोगों के लिए जीना दुश्वार हो जाएगा। ऐसे में धर्मनिरपेक्ष और उदार आवाजों के लिए न केवल अपनी बात कहना मुश्किल हो जाएगा, बल्कि पाकिस्तान के हालात बेहद खतरनाक दौर में पहुंच सकते हैं। यदि ऐसा कुछ होता है तो ऐसी परिस्थिति में धार्मिक दलों और उनके आतंकवादी समर्थकों की पाकिस्तान की राजनीति में जगह और मान्यता बढ़ेगी। निश्चित ही यह आज के पाकिस्तान के लिए बेहद मुश्किल साबित होगा, क्योंकि अस्सी के दशक में पैदा हुई पीढ़ी धार्मिक कट्टरवाद के साथ बड़ी हुई है और उन्हें तेजी से आगे बढ़ रही दुनिया में अपने स्थान व दशा का बोध शायद ही है। इन्हें स्कूलों और मस्जिदों में जो कुछ सिखाया गया है उस कारण उनकी सोच पर कट्टरता की विचारधारा पूरी तरह हावी हो चुकी है। इस तरह आने वाले दशक में देश की सत्ता इन्हीं कट्टरपंथी ताकतों के हाथ में होगी, जो पाकिस्तान के भविष्य के लिए कम से कम ठीक नहीं कहा जा सकता। हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आतंकवादियों के निशाने पर अब ईशनिंदा कानून के लिए संसद में प्रस्ताव लाने वालीं पूर्व सूचना मंत्री शेरी रहमान होंगी,क्योंकि रहमान भी पाकिस्तान में अपनी स्वतंत्र सोच रखने वाली नेता के रूप में जानी जाती हैं। ईशनिंदा कानून का प्रस्ताव लाने के चलते उन्हें भी धमकियां दी गई हैं। बावजूद इसके सरकार ने उन्हें विशेष सुरक्षा मुहैया नहींकराई है। शहबाज भट्टी की जिस तरह राजधानी इस्लामाबाद में आतंकियों ने उन पर पूरे इत्मीनान से गोलियां बरसाई वह बगैर सुनयोजित तरीके के मुमकिन नहींहै। असल में मध्ययुगीन सभ्यता की सोच रखने वाले दहशतगर्दो के लिए पाकिस्तान में खुदा को दोबारा स्थापित करना, अल्लाह और मोहम्मद को वापस लाना ही एकमात्र मिशन बन गया है। इस मामले में पाकिस्तान की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी का मानना है कि मुल्क में धर्मनिरपेक्षता का भविष्य ही नहीं है। इसका मतलब कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना के आदर्श पाकिस्तान का ख्वाब उनकी नजरों में अप्रासंगिक हो गई है। बावजूद इसके पाकिस्तान में धर्मनिरपेक्षता और अमन की संभावना पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। सत्ताधारी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के नेतृत्व वाली देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग, अल्ताफ हुसैन की सरपरस्ती में सिंध प्रांत में सक्रिय मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट समेत तमाम पार्टियों को देश के भविष्य के लिए एक साथ आगे आना होगा। अपने आपसी मतभेद भुलाकर आतंकवाद और फिरकापरस्ती के खिलाफ मुहिम छेड़ना होगा तभी एक बेहतर पाकिस्तान बनेगा और तभी सच्चे मायनों में कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना के आदर्श पाकिस्तान का ख्वाब पूरा होगा।

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