अपराध पर काबू पाने का जिम्मा सरकार का होता है लेकिन इसके साथ ही उसकी ये भी जिम्मेदारी होती है कि बच्चों का सही विकास हो, उन्हें अच्छी शिक्षा मिले और वे बेहतर इंसान बनें।
एक दिन में अखबार के एक ही पन्नो पर एक ही प्रकार की कई खबरें देखी जा सकती हैं जिसका मूल स्वर होता है कि वह लड़की हवस की शिकार बन गई। यों तो ऐसी घटना किसी के साथ हो, पीड़ादायक ही है लेकिन चिंता तब और बढ़ जाती है जब बच्चियाँ अभी होश संभालकर बड़ी हो रही हों और दुनिया को समझने का प्रयास कर रही हों और तब उन्हें उस पीड़ा का सामना करना पड़े जो जीवन भर उनका पीछा करती है। इसके चलते उन्हें यह दुनिया भयानक और क्रूर लगने लगती है। वे अभी समझ नहीं पाई होती हैं कि लड़की होना उनका गुनाह था या समाज गुनाहगार है जिसने अपने भीतर इतने अपराधियों को शरण दे रखी है।
जरा एक ही दिन की एक जैसी खबरों पर नजर डालें। दिल्ली के मॉडल टाउन की छठवीं कक्षा की बारह वर्ष की छात्रा ने आत्महत्या कर ली, जिसके साथ उसके जानने वाले लड़के ने ही बलात्कार किया था। दिल्ली के ओखला तथा राजौरी गार्डन में भी दो किशोरियों के साथ यही हुआ, तो उधर उत्तरप्रदेश के महाराजगंज जिले के कोठारीहार क्षेत्र में दस वर्ष की लड़की के साथ पड़ोस के ही अट्ठारह साल के गोलू ने बलात्कार किया और प्रतापगढ़ में एक १४ वर्ष की लड़की के साथ तीन युवकों ने सामूहिक बलात्कार किया। इन खबरों से प्रतीत होता है कि अधिकतर अपराधी १७-१८ वर्ष की उम्र के थे।
आए दिन ऐसी घटनाएँ होने से वे लड़कियाँ तो दहशत में हैं ही, बेटियों के परिजन भी खौफ खाए रहते हैं। इस प्रक्रिया में उन पर बंधन थोड़ा और अधिक कस जाता है लेकिन अड़ोस-पड़ोस वाले मौका ढूँढ ही लेते हैं। आखिर कहाँ तक उन्हें बंद करके या पहरे में रख सकते हैं तथा ऐसा करना भी क्या बेटियों के स्वतंत्र विकास में बाधक नहीं होगा ? वे पढ़-लिख कर अपने पैरों पर कैसे खड़ी होंगी ओैर समाज में अपनी जगह कैसे बना पाएँगी ? इससे भी बड़ा मुद्दा यह है कि अन्य लोग अपने लाड़लों का पालन-पोेेषण कैसे कर रहे हैं? किशोरावस्था के युवक इतना साहस कैसे जुटा लेते हैं कि सरेआम अपहरण कर लेते हैं और जोर-जबर्दस्ती का व्यवहार करते हैं? वे इतनी कुंठाओं के साथ क्यों पल-बढ़ रहे हैं? परिवारों को यह जिम्मेदारी लेनी पड़ेगी कि वे बच्चों को सही रास्ता बताएँ। दरअसल, जो अपराध नहीं करते वे भी सही नजरिया नहीं रखते हैं। उनका यह नजरिया सिर्फ यौन व्यवहार में ही नहीं बल्कि जीवन के दूसरे पहलुओं में भी नजर आता है।
अपराध पर काबू पाने का जिम्मा सरकार का होता है लेकिन इसके साथ ही उसकी ये भी जिम्मेदारी होती है कि बच्चों का सही विकास हो और उन्हें अच्छी शिक्षा मिल सके, वे बेहतर इंसान बनें और खुद से अधिक दूसरों की चिंता करें। यह सब एक स्वस्थ समाज और स्वस्थ माहौल में ही संभव है। अतः समाज और सरकार दोनों को इसका ध्यान रखना होगा।
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