बोलो मगर जबान संभाल के

हम तीन टाइप के लोगों से सतत फेडअप रहा करते हैं। एक वे जो "श" को "स" प्रोनाउंस करते हैं। दूसरे वे जो "स" की जगह पर "श" बोलते हैं। तीसरे वे जिन्हें "बॉल" बोलना हो, तो "बाल" बोलेंगे। ऐसे लोग ऑलवेज "जॉली नेचर" वालों को "जाली नेचर" वाला और "नॉटी गर्ल" को "नाटी गर्ल" कहते हैं। चूँकि अपने राम को संस्कृत और उर्दू भाषाओं का भी तनिक ठीक-ठाक ज्ञान है इसलिए जब कोई अपनी विद्वता झाड़ने के वास्ते हमारे सम्मुख विशुद्ध टकसाली लैंग्वेज की अशुद्ध प्रस्तुति करता है, हमारा रोम-रोम सुलगने लग जाता है।

हमारे एक जानने वाले हैं। वे हमेशा पाठशाला को पाठसाला और धर्मशाला को धर्मसाला कहते हैं। एक दिन शाम को मिले। कहने लगे- "सहर में घूमने जा रहा हूँ।" हमने कहा- "यह कोई मॉर्निंग वॉक का टाइम है क्या? इस समय सहर (सुबह) नहीं, शाम ढल रही है।" वे हँसते हुए बोले- "आप समझे नहीं, सहर मींस सिटी घूमने निकला हूँ।" हमने भी उनको टोकते हुए कहा- "तनिक "स" और "श" के उच्चारण में सावधानी बरता कीजिए।" वे बोले- "ठीक है भाई, आइंदा से "सुबहा" को "शुबहा" बोलूँगा। तब आपको किसी "सक", मेरा मतलब "शक" की गुंजाइश न रहेगी।"

नेक्स्ट टाइम कई दिनों के बाद मिले। मुझसे बातचीत के दौरान कांशस लगे। ऐसा लग रहा था, जैसे वे "स" बोलना ही भूल चुके हों। मैंने कहा- "बहुत दिनों के बाद दिखलाई पड़ रहे हैं। इतने रोज कहाँ रहे?" वे कहने लगे- "इधर बहुत परेशान रहा हूँ। लास्ट मंथ "शिष्ट" हो गया था। मत पूछिए कि कितनी शोचनीय शिचुएशन हो गई थी।" हमने अपने दिमाग पर बहुत जोर डाला। तब इस "शिष्ट" का मीनिंग समझ पाया। एक्चुअली वे कहना चाहते थे कि उन्हें "सिस्ट" हो गया था। इसलिए शोचनीय स्थिति हो गई थी।

हमारे ऑफिस में एक अधिकारी हैं। कोई भी काम होता है, हमें ही बुलाते हैं। कहते हैं- तुम इस काम में मुझे अशिष्ट करो। किंतु आज तक हमारे काम से वे संतुष्ट नहीं रहे, क्योंकि हम भी ऑलवेज अपने को उनके असिस्टेंट की जगह पर उनका अशिष्टेंट ही समझते आए हैं। चूंकि वे हमारे सर हैं इसलिए उनकी स्पोकेन लैंग्वेज को लेकर हम उनकी लेग पुलिंग नहीं कर पाते।

एक बार हमारे एक शायर मित्र बोले-"आपको एक सेर सुनाता हूं : "थामे हुए मसालों को हम, सहर-सहर सब में भटके हैं।" वह तो कहिए कि हम उन जनाब की जुबान से भलीभांति वाकिफ थे, वरना अर्थ का अनर्थ ही समझ लेते। वास्तव में उनका शुद्ध शेर इस प्रकार था - "थामे हुए मशालों को हम, शहर-शहर शब में भटके हैं।"अब भी हमें जब-तब इस तरह का शब्दोच्चारण करने वाला कोई न कोई मिल ही जाता है। तबीयत होती है कि उसके केस, मेरा मतलब केश पकड़ कर कहूँ- "अरे भाई! अब तो अपनी भाषा "शुधार", आई मीन करेक्ट कर ले

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